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Wednesday, May 23, 2018

जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। "शिक्षण विधि" पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। कभी-कभी लोग युक्तियों को भी विधि मान लेते हैं; परंतु ऐसा करना भूल है। युक्तियाँ किसी विधि का अंग हो सकती हैं, संपूर्ण विधि नहीं। एक ही युक्ति अनेक विधियों में प्रयुक्त हो सकती है।

शिक्षण की विविध विधियाँ

निगमनात्मक तथा आगमनात्मक

पाठ्यविषय को प्रस्तुत करने के दो ढंग हो सकते हैं। एक में छात्रों को कोई सामान्य सिद्धांत बताकर उसकी जाँच या पुष्टि के लिए अनेक उदाहरण दिए जाते हैं। दूसरे में पहले अनेक उदाहरण देकर छात्रों से कोई सामान्य नियम निकलवाया जाता है। पहली विधि को निगमनात्मक विधि और दूसरी को आगमनात्मक विधि कहते हैं। ये विधि व्याकरण शिक्षण के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

संश्लेषणात्मक तथा विश्लेषणात्मक

दूसरे दृष्टिकोण से शिक्षण विधि के दो अन्य प्रकार हो सकते हैं। पाठ्यवस्तु को उपस्थित करने का ढंग यदि ऐसा हैं कि पहले अंगों का ज्ञान देकर तब पूर्ण वस्तु का ज्ञान कराया जाता है तो उसे संश्लेषणात्मक विधि कहते हैं। जैसे हिंदी पढ़ाने में पहले वर्णमाला सिखाकर तब शब्दों का ज्ञान कराया जाता है। तत्पश्चात् शब्दों से वाक्य बनवाए जाते हैं। परंतु यदि पहले वाक्य सिखाकर तब शब्द और अंत में वर्ण सिखाए जाएँ तो यह विश्लेषणात्मक विधि कहलाएगी क्योंकि इसमें पूर्ण से अंगों की ओर चलते हैं।

वस्तुविधि

शिक्षण का एक प्रसिद्ध सूत्र हैं - "मूर्त से अमूर्त की ओर"। वास्तव में हमें बाह्य संसार का ज्ञान अपनी ज्ञानेंद्रियों के द्वारा होता है जिनमें नेत्र प्रमुख हैं। किसी वस्तु पर दृष्टि पड़ते ही हमें उसका सामान्य परिचय मिल जाता है। अत: मूर्त वस्तु ज्ञान प्रदान करने का सबसे सरल साधन है। इसीलिये आरंभ से वस्तुविधि का सहारा लिया जाता है अर्थात् बच्चों को पढ़ाने के लिए वस्तुओं का प्रदर्शन करके उनके विषय में ज्ञान प्रदान किया जाता है। यहाँ तक कि अमूर्त को भी मूर्त बनाने का प्रयास किया जाता है। जैसे, तीन और दो पाँच को समझाने के लिए पहले छात्रों के सम्मुख तीन गोलियाँ रखी जाती हैं। फिर उनमें दो गोलियाँ और मिलाकर सबको एक साथ गिनाते हैं तब तीन और दो पाँच स्पष्ट हो जाता है।

दृष्टांतविधि

वस्तुविधि का एक दूसरा रूप है - दृष्टांतविधि। वस्तुविधि में जिस प्रकार वस्तुओं के द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाता है दृष्टांतविधि में उसी प्रकार दृष्टांतों के द्वारा। दृष्टांत दृश्य भी हो सकते हैं और श्रव्य भी। इसमें चित्र, मानचित्र, चित्रपट आदि के सहारे वस्तु का स्पष्टीकण किया जाता है। साथ ही उपमा, उदाहरण, कहानी, चुटकुले आदि के द्वारा भी विषय का स्पष्टीकरण हो सकता है।

कथनविधि एवं व्याख्यानविधि

वस्तु एवं दृष्टांतविधियों से ज्ञान प्राप्त करते करते जब बच्चों को कुछ कुछ अनुमान करने तथा अप्रत्यक्ष वस्तु को भी समझने का अभ्यास हो जाता है तब, कथनविधि का सहारा लिया जाता है। इसमें वर्णन के द्वारा छात्रों को पाठ्यवस्तु का ज्ञान दिया जाता है। परंतु इस विधि में छात्र अधिकतर निष्क्रिय श्रोता बने रहते हैं और पाठन प्रभावशाली नहीं होता। इसी से प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री हर्बर्ट स्पेंसर ने कहा है- "बच्चों को कम से कम बतलाना चाहिए, उन्हें अधिक से अधिक स्वत: ज्ञान द्वारा सीखना चाहिए"। व्याख्यानविधि इसी की सहचरी है। उच्च कक्षाओं में प्राय: व्याख्यानविधि का ही प्रयोग लाभदायक समझा जाता है।
कथनविधि में प्राय: हर्बर्ट के पाँच सोपानों का प्रयोग किया जाता है। वे हैं
(1) प्रस्तावना, (2) प्रस्तुतीकरण, (3) तुलना या सिद्धांतस्थापन, (4) आवृत्ति, (5) प्रयोग।
परंतु केवल ज्ञानार्जन के पाठों में ही पाँचों सोपानों का प्रयोग होता है। कौशल तथा रसास्वादन के पाठों में कुछ सीमित सोपानों का ही प्रयोग होता है।

प्रश्नोत्तर विधि (सुकराती विधि)

प्रश्न यद्यपि एक युक्ति है फिर भी सुकरात ने प्रश्नोत्तर को एक विधि के रूप में प्रयोग करके इसे अधिक महत्व प्रदान किया है। इसी से इसे सुकराती विधि कहते हैं। इसमें प्रश्नकर्ता से ही प्रश्न किए जाते हैं और उसके उत्तरों के आधार पर उसी से प्रश्न करते-करते अपेक्षित उत्तर निकलवा लिया जाता है।

करके सीखना

जब से बाल मनोविज्ञान के विकास ने यह सिद्ध कर दिया है कि शिक्षा का केंद्र न तो विषय है, न अध्यापक, वरन् छात्र है, तब से शिक्षण में सक्रियता को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। करके सीखना (learning by doing) अर्थात् स्वानुभव द्वारा ज्ञान प्राप्त करना, आजकल का सर्वाधिक व्यापक शिक्षणसिद्धांत है। अत: रूसों से लेकर मांटेसरी और ड्यूबी तक शिक्षाशास्त्रियों ने बच्चों की ज्ञानेंद्रियों को अधिक कार्यशील बनाने तथा उनके द्वारा शिक्षा देने पर अधिक बल दिया है। महात्मा गांधी ने भी इसी सिद्धांत के आधार पर बेसिक शिक्षा को जन्म दिया। अत: सक्रिय विधि के अंतर्गत अनेक विधियाँ सम्मिलित की जा सकती हैं जैसे- शोधविधि (ह्यूरिस्टिक), योजना (प्रोजेक्ट) विधि, डाल्टन प्रणाली, बेसिक-शिक्षा-विधि, इत्यादि।

शोधविधि

जर्मनी के प्रोफेसर आर्मस्ट्रौंग द्वारा शोधविधि का प्रतिपादन हुआ था। इस विधि में छात्रों को उपयुक्त वातावरण में रखकर स्वयं किसी तथ्य को ढूढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि अध्यापक कुछ नहीं करता और छात्रों को मनमाना काम करने को छोड़ देता है। सच पूछिए तो वह छात्र का पथप्रदर्शन करता तथा उसे गलत रास्ते से हटाकर सीधे रास्ते पर लाता रहता है। उसका लक्ष्य यह रहता है कि जो ज्ञान छात्र अपने निरीक्षण अथवा प्रयोग द्वारा प्राप्त कर सकता है उसे बताया न जाए। इस विधि का प्रयोग पहले तो विज्ञान की शिक्षा में किया गया। फिर धीरे-धीरे गणित, भूगोल तथा अन्य विषयों में भी इसका प्रयोग होने लगा।

प्रोजेक्ट विधि

अमरीका के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री ड्यूवी, किलपैट्रिक, स्टीवेंसन आदि के सम्मिलित प्रयास का फल योजना (प्रोजेक्ट) विधि है। इसके अनुसार ज्ञानप्राप्ति के लिए स्वाभाविक वातावरण अधिक उपयुक्त होता है। इस विधि से पढ़ाने के लिए पहले कोई समस्या ली जाती है, जो प्राय: छात्रों के द्वारा उठाई जाती है और उस समस्या का हल करने के लिए उन्हीं के द्वारा योजना बनाई जाती है और योजना को स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाता है। इसी से इसकी परिभाषा इस प्रकार की जाती है कि योजना वह समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाए।

डाल्टन योजना

अमरीका के डाल्टन नामक स्थान में 1912 से 1915 के बीच कुमारी हेलेन पार्खर्स्ट्र ने शिक्षा की एक नई विधि प्रयुक्त की जिसे डाल्टन योजना कहते हैं। यह विधि कक्षाशिक्षण के दोषों को दूर करने के लिए आविष्कृत की गई थी। डाल्टन योजना में कक्षाभवन का स्थान प्रयोगशाला ले लेती है। प्रत्येक विषय की एक प्रयोगशाला होती है, जिसमें उस विषय के अध्ययन के लिए पुस्तकें, चित्र, मानचित्र तथा अन्य सामग्री के अतिरिक्त सन्दर्भग्रंथ भी रहते हैं। विषय का विशेषज्ञ अध्यापक प्रयोगशाला में बैठकर छात्रों की सहायता करता है, उनके कार्यों की जाँच तथा संशोधन करता है। वर्ष भर का कार्य 9 या 10 भागों में बाँटक निर्धारित कार्य (असाइनमेंट) के रूप में प्रत्येक छात्र को लिखित दिया जाता है। छात्र उस निर्धारित कार्य को अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न प्रयोगशालाओं में जाकर पूरा करता है। कार्य अन्वितियों में बँटा रहता है। जितनी अन्विति का कार्य पूरा हो जाता है उतनी का उल्लेख उसके रेखापत्र (ग्राफकार्ड) पर किया जाता है। एक मास का कार्य पूरा हो जाने पर ही दूसरे मास का निर्धारित कार्य दिया जाता है। इस प्रकार छात्र की उन्नति उसके किए हुए कार्य पर निर्भर रहती है। इस योजना में छात्रों को अपनी रुचि और सुविधा के अनुसार कार्य करने की छूट रहती है। मूल स्रोतों से अध्ययन करने के कारण उनमें स्वावलंबन भी आ जाता है। इस योजना के अनेक रूपांतर हुए जैसे- बटेविया, विनेटका आदि योजनाएँ। डेक्रौली योजना यद्यपि इससे पूर्व की है, फिर भी उसके सिद्धांतों में डाल्टन योजना के आधार पर परिवर्तन किए गए।

वर्धा योजना या बुनियादी तालीम

महात्मा गांधी की वर्धा योजना या बेसिक शिक्षा (बुनियादी तालीम) भी अपने ढंग की एक शिक्षाविधि है। गांधी जी ने देश की तत्कालीन स्थिति को देखते हुए शिक्षा में 'हाथ के काम' को प्रधानता दी। उनका विश्वास था कि जब तक छात्र हाथ से काम नहीं करता तब तक उसे श्रम का महत्व नहीं ज्ञात होता। सैद्धांतिक ज्ञान मनुष्य को अहंकारी एवं निष्क्रिय बना देता है। अत: बच्चों को आरंभ से ही किसी न किसी हस्तकौशल के द्वारा शिक्षा देनी चाहिए। हमारे देश में कृषि एवं कताई-बुनाई बुनियादी धंधे हैं जिनमें देश की तीन चौथाई जनता लगी हुई है। अत: उन्होंने इन्हीं दोनों को मूल हस्तकौशल मानकर शिक्षा में प्रमुख स्थान दिया। बेसिक शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ हैं :-
  • (1) मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा,
  • (2) हस्तकौशल केंद्रित शिक्षा,
  • (3) सात से 14 वर्ष तक निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा,
  • (4) शिक्षा स्वावलंबी हो, अर्थात् कम से कम अध्यापकों का वेतन छात्रों के किए हुए कार्यों की बिक्री से आ जाए।
अंतिम सिद्धांत का बड़ा विरोध हुआ और बेसिक शिक्षा में से हटा दिया गया।
अंग्रेजी शिक्षा ने देश के अधिकांश शिक्षित वर्ग को ऐसा पंगु बना दिया है कि वे हाथ से काम करना हेय मानते हैं। यही कारण है कि संपन्न तथा उच्च वर्ग के लोगों ने बुनियादी शिक्षा के प्रति उदासीनता दिखाई जिससे यह शिक्षा केवल निर्धन वर्ग के लिए रह गई है। अत: यह धीरे-धीरे असफल होती जा रही है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि शिक्षणविधियाँ अनेक हैं। सबका प्रवर्तन किसी न किसी विशेष परिस्थिति में किसी शिक्षाशास्त्री के द्वारा हुआ है। वास्तव में प्रत्येक अध्यापक की अपनी शिक्षाविधि होती है जिससे व छात्रों को उनकी रुचि तथा योग्यता के अनुरूप ज्ञान प्रदान करता है। जो विधि जिसके लिए अधिक उपयोगी हो वही उसके लिए सर्वश्रेष्ठ विधि है।

Sunday, May 20, 2018

शिक्षण विधि-जनक

क्रमांक    
शिक्षण विधिइस विधि के जनकउनकी तस्वीर
1.आगमन विधिअरस्तु 
2.निगमन विधि  अरस्तु 
3.प्रश्नोत्तर  सुकरात 
4.संवादप्लेटो 
5.प्रोजेक्टकिलपैट्रिक 
6.खेलकॉल्ड्वेल कुक 
7.डेल्टनकुं. हेलेन पार्क हर्स्ट 
8.हर्बर्टहर्बर्ट 
9.किंडरगार्टनफ्रोबेल 
10.माण्टेसरीमारिया माण्टेसरी Maria Montessori1913.jpg
11.हयूरिस्टिकआर्मस्ट्रॉन्ग 
12.गैरीएडवर्ट 
13.विनेटकाडॉ. कार्लटूर्न वाश्वर्न
 N/A
14.वोटिवियाजॉन कैनेडी
N/A
15.डेक्रोली      डेक्रोली      
 N/A
16.ओविडप्रो ओविड डेक्रोली (बेल्जियम)
 N/A

CTET,UPTET और अन्य सभी State TET परीक्षाओं ,KVS और अन्य शिक्षक प्रतियोगी परीक्षाओं में शिक्षण विधियों से संबंधित प्रश्नोत्तर पूछे जाते हैं।


 जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षणविधि कहते हैं।

विज्ञान शिक्षण :–

विज्ञान शिक्षण की विधियाँ
1. पाठ योजना (पंचपदी) के प्रवर्तक – हरबर्ट स्पेन्सर
2. इकाई योजना के प्रवर्तक – मारिसन
3. खेल विधि के प्रवर्तक – काल्डवेन कुक
4. खोज/अनुसंधान/ अन्वेषण/ह्युरिस्टिक विधि के प्रवर्तक – प्रो• आर्मस्ट्राग
5. अभिक्रमिक अनुदेशन विधि के जन्मदाता – बी• एफ• स्किनर
6. प्रोजेक्ट/ प्रायोजना विधि के प्रवर्तक – किलपैट्रिक
विज्ञान शिक्षण के मुख्य बिन्दु —
1. प्रयोगशाला विधि स्वयं करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है ।
2. पर्यटन विधि छात्रों को प्रत्यक्ष इन देने के सिद्धांत पर आधारित है । (पेस्टालाजी)
3. अवलोकन विधि से छात्रों में निरिक्षण करने की योग्यता का विकास होता है ।
4. अनुसंधान विधि से छात्रों में खोज प्रवृत्ति का उदय होता है ।
5. समस्या समाधान विधि में छात्रों में विचार तथा निर्णय शक्ति का विकास होता है ।
6. छोटी कक्षाओं में अधिकतर प्रयोग प्रदर्शन विधि का प्रयोग उचित होता है ।
7. बड़ी कक्षाओ में प्रयोगशाला विधि का प्रयोग किया जाना उचित है ।
8. प्रयोग प्रदर्शन विधि से शिक्षण कराने में बालकों में करके सीखने के गुण का विकास होता हैं ।
9. प्रायोजना विधि में कोई कार्य बालकों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं हर करने का प्रयास करते हैं ।
10. प्रक्रिया विधि बाल केन्द्रित विधि है जिसमें बालक को प्रधानता दी जाती हैं । बालक स्वतः स्वभाविक रूप से क्रियाशील होता हैं ।
11. सम्प्रत्यय किसी देखी गई वस्तु की मानसिक प्रतिमा है । सम्प्रत्यय वे विचार है जो वस्तुओं, घटनाओं तथा गुणों का उल्लेख करते हैं ।
12. सम्प्रत्यय निर्माण में बच्चों को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है – निरिक्षण, तुलना, पृथक्करण, सामान्यीकरण तथा परिभाषा निर्माण । व्याख्यान विधि सबसे सरल व प्राचीन विधि है ।

भौतिक एवं जैविक पर्यावरण अध्ययन की प्रविधियां (कक्षा 5 स्तर तक )

प्रयोग प्रदर्शन विधि — 
1. प्राथमिक स्तर के बालकों को भौतिक एवं जैविक पर्यावरण अध्ययन विषय के पाठों के अंतर्गत आए प्रयोग प्रदर्शन को स्वयं करके बच्चों को दिखाना चाहिए ।
2. छात्रों को भी यथा संभव प्रयोग करने तथा निरिक्षण करने का अवसर देना चाहिए ।
3. इस विधि से शिक्षण कराने पर करके सीखने के गुण का विकास होता है ।
प्रयोग – प्रदर्शन विधि की विशेषता :-
1. यह विधि छात्रों को वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण प्रदान करती है ।
2. इस विधि में छात्र सक्रिय रहते है तथा प्रश्नोत्तरी के माध्यम से पाठ का विकास होता है ।
3. छात्रों की मानसिक तथा निरिक्षण शक्ति का विकास होता है ।
4. विषय वस्तु सरल, सरस, बोधगम्य तथा स्थायी हो जाती है ।
प्रयोग-प्रदर्शन विधि को प्रभावी बनाने के तरीके —
1. प्रयोग प्रदर्शन ऐसे स्थान पर करना चाहिए जहाँ से सभी बालकों को आसानी से दिख सके ।
2. छात्रों को प्रयोग करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए ।
3. इस विधि का शिक्षण कराते समय अध्यापक को सक्रिय रहकर छात्रों द्वारा प्रयोग करते समय उनका उचित मार्गदर्शन करना चाहिए ।
4. कक्षा में प्रयोग करने से पहले अध्यापक को एक बार स्वयं प्रयोग करके देख लेना चाहिए ।
5. प्रयोग से संबंधित चित्र, महत्वपूर्ण सारांश एवं निष्कर्ष श्यामपट्ट पर लिखना चाहिए ।
प्रयोग-प्रदर्शन विधि के दोष —
1. इस विधि से शिक्षण कराने पर सभी छात्रों को समान अवसर नहीं मिलते ।
2. इस विधि में व्यक्तिगत समस्या के समाधान का अवसर छात्रों को नहीं मिलता ।
3. प्रयोग करते समय कुछ छात्र निष्क्रिय बैठें रहते है ।
4. कक्षा में छात्रों की संख्या अधिक होने पर यह विधि प्रभावी नहीं रहती ।

प्रायोजना विधि 
1. प्रायोजना विधि के प्रवर्तक अमेरिकी शिक्षाविद विलियम हैनरी किलपैट्रिक थे । ये जाॅन ड्युवी के शिष्य थे ।
2. परिभाषा -“प्रोजेक्ट वह सह्रदय सौउद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है ।” – किलपैट्रिक
” प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है ।” – प्रो• स्टीवेंसन
” क्रिया की एक ऐसी इकाई जिसके नियोजन एवं क्रियान्वन के लिए चार स्वयं ही उत्तरदायी हो ।” – पारकर
3. इस विधि में कोई कार्य छात्रों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं सुलझाने का प्रयास करता है ।
4. प्रोजेक्ट विधार्थियों के जीवन से संबंधित किसी समस्या का हल खोजने के लिए किया जाने वाला कार्य है जो स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्ण किया जाता है ।
प्रायोजना विधि के चरण :–
1. परिस्थिति उत्पन्न करना – इसमें बालकों की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण होती है ।
2. प्रायोजना का चुनाव – प्रोजेक्ट के चुनाव में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है ।
3. प्रायोजना का नियोजन – इसके अंतर्गत प्रायोजना का कार्यक्रम बनाना पड़ता है ।
4. प्रायोजना का क्रियान्वन – इस स्तर पर शिक्षक कार्यक्रम की योजना के अनुसार सभी छात्रों को आवंटित करता है ।
5. प्रायोजना का मूल्यांकन – प्रायोजना की क्रियान्विती पूर्ण होने पर छात्र तथा शिक्षक इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि कार्य में कहा तक सफलता मिली ।
6. प्रायोजना का अभिलेखन – इस चरण के अंतर्गत प्रायोजना से संबंधित सभी बातों का उल्लेख किया जाता है ।
प्रायोजना विधि के गुण –
1. यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित विधि है जिसमें बालक को स्वतंत्रतापूर्वक सोचने, विचारने, निरिक्षण करने तथा कार्य करने का अवसर मिलता है ।
2. प्रोजेक्ट संबंधी क्रियाएं सामाजिक वातावरण में पूरी की जाती है । इस कारण छात्रों में सामाजिकता का विकास होता है ।
3. इस विधि में छात्र स्वयं करके सीखते है, अतः प्राप्त होने ज्ञान स्थायी होता है ।
4. प्रायोजना का चुनाव करते समय छात्रों की रुचियों, क्षमताओं और मनोभावों को ध्यान में रखा जाता है ।
प्रायोजना विधि के दोष –
1. इस विधि द्वारा सभी प्रकरणों का अध्ययन नहीं कराया जा सकता ।
2. इस विधि में प्रशिक्षित अध्यापक की आवश्यकता होती है ।
3. प्रायोजना विधि अधिक खर्चीली है ।
4. इस विधि में अधिक समय लगता है ।

प्रक्रिया विधि (Learning by doing)
1. इस विधि को क्रिया द्वारा सीखना भी कहते है।
2. शिक्षा में क्रिया को प्रधानता देने वाले प्रथम शिक्षाशास्त्री कमेनियस थे । उनके अनुसार क्रिया करना बालक का स्वाभाविक गुण है, अतः जो भी शिक्षा प्रदान की जाए, वह क्रिया के द्वारा प्रदान की जाए ।
3. शिक्षाविद पेस्टालाजी ने क्रिया द्वारा सीखने पर बल दिया है ।
4. पेस्टालाजी के शिष्य फ्रोबेल ने प्रसिद्ध शिक्षण विधि किंडरगार्टन का आविष्कार किया । यह खेल और प्रक्रिया द्वारा शिक्षा देने की विधि है ।
5. प्रक्रिया विधि बालकों के प्रशिक्षण में क्रियाशीलता के सिद्धांत को स्वीकार करती है ।
6. प्रोजेक्ट विधि, मान्टेसरी विधि, किंडरगार्टन विधि इस पर आधारित है ।
7. प्रक्रिया विधि जैविक एवं भौतिक पर्यावरण विषय के अध्ययन के लिए उपयुक्त विधि है ।
प्रक्रिया विधि के गुण —
1. यह विधि बाल केन्द्रित विधि है जिसमें बालक को प्रधानता दी जाती हैं ।
2. प्रक्रिया विधि में वस्तुओं के संग्रह, पर्यटन, अवलोकन, परीक्षण के विषयों में विशेष रूप से विचार करती है ।
3. बालकों में करके सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है ।
प्रक्रिया विधि के दोष —
1. प्रकिया विधि में स्वतंत्र अध्ययन होने के कारण वास्तविक (यथार्थ) अध्ययन नहीं हो पाता ।
2. प्रक्रिया विधि विषय केन्द्रित तथा शिक्षक केन्द्रित नहीं है जबकि शिक्षण में दोनों की आवश्यकता है ।

सम्प्रत्यय प्रविधि 
1. “सम्प्रत्यय किसी देखी गई वस्तु की मानसिक प्रतिमा है । ” – बोरिंग, लैंगफील्ड और वील्ड ।
2. ” सम्प्रत्यय क्रियाशील ज्ञानात्मक मनोवृत्ति है ।
सम्प्रत्यय किसी देखी हुई वस्तु या मन का प्रतिमान है । ” – रास
3. ” सम्प्रत्यय किसी वस्तु का सामान्य अर्थ होता है जिसे शब्द या शब्द समूहों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है । सम्प्रत्यय का आधार अनुभव होता है ।” – क्रो एंड क्रो
4. सम्प्रत्यय बालक के व्यवहार को निर्धारित करते हैं । उदाहरण के लिए बालक मस्तिष्क में परिवार का सम्प्रत्यय (मानसिक प्रतिमा) यदि अच्छा और अनुक्रम विकसित हुआ है, तो बालक अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अच्छा व्यवहार करेगा और परिवार से संबंधित सभी कार्य उत्तरदायित्व से करेगा । परिवार के सभी सदस्यों का आदर करेगा तथा परिवार में वह प्रत्येक प्रकार से समायोजित होगा ।
सम्प्रत्यय निर्माण प्रविधि —
सम्प्रत्यय निर्माण में बच्चों को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है । यथा —
1. निरिक्षण – निरिक्षण के द्वारा बच्चें किसी वस्तु के सम्प्रत्यय का निर्माण करता है ।
2. तुलना – छात्र निरिक्षण द्वारा बनें विभिन्न सम्प्रत्ययों में तुलना करता है ।
3. पृथक्करण – छात्र दो सम्प्रत्ययों के बीच समानता और भिन्नता की बातों को पृथक करता है ।
4. सामान्यीकरण – इसमें छात्र किसी वस्तु का सम्प्रत्यय (प्रतिमा) का स्पष्ट रूप धारण कर लेता है ।
5. परिभाषा निर्माण – छात्र के उपर्युक्त चारों स्तरों से गुजरने के बाद वास्तविक सम्प्रत्यय का निर्माण उसके मन में बनता है ।
सम्प्रत्यय निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक –
1. ज्ञानेन्द्रियाँ 2. बौद्धिक क्षमता 3. परिपक्वता 4. सीखने के अवसर 5. समायोजन 6. अन्य कारक – अनुभवों के प्रकार, लिंग, समय आदि ।
अनुसंधान विधि (Discovery Methods)
1. इस विधि को खोज या अन्वेषण विधि भी कहते हैं ।
2. प्रो• एच• ई• आर्मस्ट्रांग ने विज्ञान शिक्षण विधि में इस अनुसंधान विधि का सुत्रपात किया ।
3. इस विधि का आधार आर्मस्ट्राग ने हरबर्ट स्पेन्सर के इस कथन पर रखा कि ” बालकों को जितना संभव हो, बताया जाए और उनको जितना अधिक संभव हो, खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।”
4. इस विधि का प्रमुख उद्देश्य बालकों में खोज की प्रवृत्ति का उदय करना है ।
5. इस विधि में छात्र पर ज्ञान उपर से लादा नही जाता, उन्हें स्वयं सत्य की खोज के लिए प्रेरित किया जाता है ।
6. अध्यापक का कर्तव्य है कि वह बच्चे को कम से कम बताएं और उसे स्वयं अधिक से अधिक सत्य प्राप्त करने का अवसर प्रदान करें ।
अनुसंधान विधि की कार्यप्रणाली —
1. इस विधि में छात्र के सामने कोई समस्या प्रस्तुत की जाती है । प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाती है ।
2. आवश्यकता पड़ने पर बालक परस्पर वाद विवाद करते हैं, प्रश्न पुते हैं तथा पुस्तकालय में जाकर पुस्तक देखते है ।
अनुसंधान विधि के गुण —
1. बालको को स्वयं करके सीखने को प्रेरित करती है ।
2. छात्रों में वैज्ञानिक अभिरूचि तथा दृष्टिकोण उत्पन्न करती है ।
3. छात्रों में स्वाध्याय की आदत बनती है ।
4. छात्र क्रियाशील रहते है, जिससे अर्जित ज्ञान स्थायी होता है ।
5. छात्रों में परिश्रम करने की आदत पड़ जाती है ।
6. छात्रों में आत्मानुशासन, आत्म संयम तथा आत्मविश्वास जागृत होता है ।
7. सफलता प्राप्त करने पर छात्र उत्साही होते है तथा उन्हें प्रेरणा मिलती हैं ।
अनुसंधान विधि के दोष —
1. छोटी कक्षाओं के लिए अनुसंधान विधि उपर्युक्त नहीं है क्योंकि तार्किक व निरिक्षण शक्ति का विकास छोटे बच्चों में नहीं हो पाता ।
2. इस शिक्षण विधि में मंद बुद्धि विधार्थी आगे नही बढ़ पाते हैं तथा पाठ्यक्रम धीरे – धीरे आगे बढ़ते है ।
3. यह विधि प्रतिभावान बच्चों के लिए उपयुक्त है । पूरी कक्षा के लिए नहीं ।
4. प्राथमिक स्तर के बालक समस्या का विश्लेषण करने में असमर्थ होते है ।

पर्यटन विधि 
1. पर्यटन विधि छात्रों को प्रत्यक्ष ज्ञान देने के सिद्धांत पर आधारित है ।
2. इस विधि में छात्रों को का की चारदीवारी मे नियंत्रित शिक्षा न देकर स्थान – स्थान पर घुमाकर शिक्षा दी जाती है ।
3. पर्यटन के द्वारा बच्चें स्वयं प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करते हैं ।
4. पेस्टालाॅजी पर्यटन विधि के जन्मदाता माने जाते हैं । यद्यपि महान दार्शनिक रूसो ने भी पर्यटन को बालकों की शिक्षा का एक प्रमुख साधन माना है ।
पर्यटन विधि के लाभ —
1. कक्षा तथा प्रयोगशाला में पढ़ी हुई बातों, तथ्यों, वस्तुओं, सिद्धांतों एवं नियमों का बाह्य जगत में आकर स्पष्टीकरण करने का अवसर मिलता है ।
2. पर्यटन विधि द्वारा विज्ञान शिक्षण को सरल, बोधगम्य तथा आकर्षक बनाया जा सकता है ।
3. पर्यटन विधि द्वारा छात्रों में निरिक्षण करने की योग्यता का विकास होता है ।
4. पर्यटन विधि से छात्र मिलकर काम करना सीखते है ।
5. छात्र अपने ज्ञान को क्रमबद्ध तथा सुव्यवस्थित करना सीखते है ।
6. इस विधि में छात्र पर्यटन के साथ – साथ मनोरंजन होने के कारण बालक मानसिक रूप से थकते नहीं है ।
पर्यटन विधि के दोष —
1. इस विधि द्वारा प्रत्येक प्रकरण का अध्ययन संभव नहीं है ।
2. इसकी सफलता के लिए शिक्षक तथा छात्रों में सहयोग जरूरी है ।
3. पर्यटन के लिए उचित मात्रा में धन की जरूरत होती है ।

प्रयोगशाला विधि
1. इस विधि में छात्र प्रयोगशाला में स्वयं करके सीखना सिद्धांत पर सीखता है अर्थात छात्र स्वयं प्रयोग करता है, निरिक्षण करता है और परिणाम निकालता है । इससे छात्र सक्रिय रहते है ।
2. इस विधि में छात्र को कोई शंका या कठिनाई होती है, तो शिक्षक उसका समाधान करता है ।
3. इस विधि में छात्र अधिकतम सक्रिय रहता है जबकि शिक्षक निरीक्षण करते रहते है ।
प्रयोगशाला विधि के लाभ —
1. प्रयोगशाला विधि करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है ।
2. इस विधि में छात्रों में निरिक्षण, परीक्षण, चिंतन, तर्क आदि कुशलताओं का विकास किया जा सकता है जो विज्ञान शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य है ।
3. छात्रों को अधिकाधिक ज्ञानेन्द्रियों के प्रयोग का अवसर मिलता है । इस प्रकार प्राप्त इन अधिक स्थाई होता है ।
4. प्रयोगशाला विधि द्वारा छात्रों को वैज्ञानिक विधियों में प्रशिक्षित कर सकते हैं ।
5. इस विधि द्वारा वैज्ञानिक अभिवृद्धि का विकास किया जा सकता है ।
प्रयोगशाला विधि के दोष —
1. प्रयोगशाला विधि में छोटी कक्षाओं के छात्र कठिनाई महसूस करते हैं ।
2. इस विधि से उच्च स्तर का शिक्षण ही संभव हैं ।
3. अध्यापक के सक्रिय न होने पर यह विधि सफल नही हो सकती ।
4. यह विधि अंत्यत खर्चीली हैं ।

अवलोकन विधि 
1. इस विधि में छात्र स्वयं निरिक्षण कर वास्तविक ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
2. विज्ञान शिक्षण में छात्र प्रत्येक संभावित तथ्य को देखकर, छूकर, स्पर्श करके और चख कर निरीक्षण करता है, जिसके आधार पर वस्तुओं अथवा पदार्थों के गुणों का वर्णन करने में समर्थ होते हैं ।
3. अवलोकन विधि में निरीक्षण करने की प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित, सबल व प्रभावी बनाने का प्रयास किया जाता है ।
अवलोकन विधि के गुण – –
1. इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी तथा स्पष्ट होता है ।
2. यह विधि स्वयं करके सीखने पर आधारित होने के कारण विषय को रोचक बनाती हैं ।
3. इस विधि में छात्रों को स्वतंत्र रूप से देखने, सोचने तथा तर्क करने का अवसर मिलता है ।
4. छात्रों की विचार प्रकट करने, अभिव्यक्ति प्रकट करने की प्रवृत्ति का विकास होता है ।
5. छात्रों में करके सीखने की आदत का विकास होता है ।
अवलोकन के समय ध्यान देने योग्य बातें – –
1. छात्रों को अवलोकन हेतु प्रेरित करने से पहले अध्यापक को स्वयं भलीभाँति अवलोकन करना चाहिए ।
2. अवलोकन के सभी कार्य प्रजातांत्रिक वातावरण में होने चाहिए ।
3. आवश्यकतानुसार अध्यापक को अवलोकन के समय बीच – बीच में प्रश्न करते रहना चाहिए ।
अवलोकन विधि के गुण – –
1. हर स्तर पर अवलोकन नही कर सकते ।
2. समूह का आकार बड़ा होने पर सभी छात्र प्रदर्शन को नहीं देख पाते हैं जिससे वे अवलोकन नहीं कर पाते ।
3. एक ही समय में कई प्रयोग प्रदर्शन दिखाए जाते हैं जिससे छोटी कक्षाओं के छात्र समझ नहीं पाते ।

प्रश्नोंत्तर परिचर्चा विधि ( Discussion Methods )
1. प्रश्नोत्तर परिचर्चा विधि का प्रयोग की रूपों में होता है जैसे – वाद विवाद, विचार गोष्ठी, दल चर्चा आदि ।
2. इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब सभी विधार्थियों को विचार विमर्श में सीधे रूप में सम्मिलित करना संभव हो ।
3. इस विधि में कुछ छात्र दिए गए विषय या समस्या के विभिन्न पक्षों पर संक्षेप में भाषण तैयार करते हैं तथा शिक्षक की अध्यक्षता में भाषण देते हैं ।
4. भाषण के उपरान्त शिक्षक शेष छात्रों से प्रश्न आमंत्रित करता है ।
5. जहाँ कहीं जरूरत होती है, शिक्षक सही उत्तर देने में संपूर्ण कार्यक्रम में मार्गदर्शन करता हैं ।
प्रश्नोत्तरी परिचर्चा विधि के गुण – –
1. इस विधि में छात्रों में आत्माभिव्यक्ति का विकास होता है ।
2. इस विधि में छात्रों में नेतृत्व के लिए प्रशिक्षण मिलता हैं ।
3. छात्रों में व्यापक दृष्टिकोण का विकास होता हैं ।
4. आलोचनात्मक चिंतन, तर्क आदि क्षमताओं का विकास किया जा सकता है ।
5. परस्पर सहयोग करने की भावना का विकास होता हैं ।
प्रश्नोत्तर परिचर्चा विधि के दोष – –
1. प्रारंभिक कक्षाओं में छात्रों की अभिव्यक्ति स्तर की नहीं होती है, अतः प्रयोग करना कठिन होता हैं ।
2. प्रश्नोंत्तर विधि में पाठ्यवस्तु का विकास धीमी गति से होता है ।
3. इस विधि में एक अच्छे पुस्तकालय की सुविधा होनी चाहिए ताकि विधार्थी विचार विमर्श से पहले अध्ययन कर सकें ।
4. इस विधि का प्रयोग करने के लिए कुशल व योग्य शिक्षकों की आवश्यकता होती है ।

समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)
1. यह ह्युरिस्टिक विधि की तरह है जो काम करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
2. इस विधि से छात्रों में समस्या हल करने की क्षमता विकसित होती है ।
3. यह विधि छात्रों में चिंतन तथा तर्कशक्ति का विकास करती हैं ।
4. “समस्या विधि निर्देश की वह विधि है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को उन चुनौती पूर्ण स्थितियों के द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है जिनका समाधान करना आवश्यक है ।” – वुड
समस्या समाधान विधि के चरण —
1. समस्या विधि का चयन – अध्यापक व विधार्थी मिलकर समस्या का चयन करते हैं ।
2. समस्या चयन का कारण — विधार्थियों को बताया जाता है कि समस्या का चयन क्यों किया गया है ?
3. समस्या को पूर्ण करना – समस्त विधार्थी अध्यापक के मार्गदर्शन में समस्या के समाधान हेतू कार्य करते है ।
4. समस्या को हल करना — अंत में विधार्थी समस्या का हल खोज लेते है, यह हल प्रामाणिक या परिलक्षित लक्ष्यों पर आधारित होता हैं ।
5. हर या समाधान का प्रयोग — विधार्थी प्रामाणिक समाधान का प्रयोग करते हैं ।
समस्या समाधान विधि के गुण —
1. समस्या समाधान विधि विधार्थियों में विचार तथा निर्णय शक्ति का विकास करती हैं ।
2. इस विधि में छात्र सामुहिक निर्णय लेना सीखते हैं ।
3. छात्रों में वैज्ञानिक ढंग से चिंतन करने की क्षमता का विकास होता हैं ।
4. यह विधि स्वाध्याय का विकास करती हैं तथा प्रशिक्षण प्रदान करती है ।
5. यह विधि छात्रों की भावी योजनाओं के समस्याओं को हल करने का प्रशिक्षण देती हैं ।
समस्या समाधान विधि के गुण —
1. समस्या समाधान विधि का प्रयोग छोटी कक्षाओं के लिए नहीं किया जा सकता हैं ।
2. इस विधि में जरूरी नहीं है कि विधार्थियों द्वारा निकाले गए परिणाम संतोषजनक हो ।
3. इस विधि का प्रयोग कुशल अध्यापक ही कर सकते हैं, सामान्य स्तर के अध्यापक नहीं ।
4. इस विधि में पर्याप्त समय लगता हैं ।

सामान्य विज्ञान शिक्षण के विशिष्ट उद्देश्य अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन के रूप में —
1. ज्ञान (Knowledge) — छात्रों को उन तथ्यों, सिद्धांतों व विधियों का ज्ञान प्रदान करना है जो विज्ञान से संबंधित हैं । इससे बालक के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होगे —
A. विज्ञान के नवीन शब्दों की जानकारी प्राप्त कर छात्र वैज्ञानिक भाषा में तथ्यों का वर्णन कर सकेंगे ।
B. छात्र अपने व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित ज्ञान को प्राप्त व व्यक्त कर सकेंगे ।
C. वैज्ञानिक परिभाषाएँ तथा सिद्धांतों से परिचित होकर उनमें पारस्परिक संबंध स्थापित कर सकेंगे ।
2. अवबोध (Understanding) — इससे बालक में निम्नलिखित परिवर्तन आएगें – A. छात्र वैज्ञानिक विचारों तथा संबंधों को अपनी भाषा में व्यक्त करता है तथा विभिन्न तथ्यों में परस्पर तुलना कर सकता हैं ।
B. कारण तथा प्रभाव संबंध को स्पष्ट कर सकता हैं ।
3. ज्ञानापयोग (Application) – छात्र अपरिचित समस्याओं को समझने एवं उन्हें हल करने में सामान्य विज्ञान के ज्ञान का उपयोग करता है ।
4. कौशल (Skill) — छात्रों में चार्ट एवं चित्र बनाने तथा उनमें प्रयोग करने का कौशल उत्पन्न हो जाता है । इसके अंतर्गत उसमें निम्न परिवर्तन होते हैं —
A. पर्यावरण से संबंधित तथ्यों व वस्तुओं का कुशलतापूर्वक प्रयोग करने की योग्यता प्राप्त करता है ।
B. उपकरणों को प्रयोग में लाने, परीक्षण करके परिणाम निकालने, उनमें होने वाले दोषों को दूर करने की कुशलता प्राप्त करता हैं ।
5. अभिवृति (Attitude) — A. बालक विभिन्न परिस्थितियों में शीघ्र व सही निर्णय ले सकता है ।
B. अंधविश्वासों व पूर्वाग्रहों को वैज्ञानिक विधि से दूर करने में सहायता प्राप्त होती हैं ।
C. विज्ञान से संबंधित तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करता हैं ।
6. अभिरुचि (Interest) — A. विधालय की वैज्ञानिक प्रवृत्तियों जैसे — विज्ञान मेला, विज्ञान प्रदर्शनी, विज्ञान क्विज आदि में सक्रिय भाग लेता हैं ।
B. विज्ञान के दैनिक उपयोग संबंधी कार्यों में रूचि लेता हैं ।
7. प्रशंसा (Appriciation) — वैज्ञानिक आविष्कारों एवं खोजों के मानव जीवन में योगदान की प्रशंसा करता है । वैज्ञानिकोंके जीवन की घटनाओं की सराहना कर उनसे प्रेरणा लेता है ।
NCERT के शब्दों में Þहमारे शैक्षिक उद्देश्य वे परिवर्तन है जो हम बालक में लाना चाहते है ।

विज्ञान शिक्षण के प्रमुख उपकरण —
1. मैजिक लेण्टर्न — इसके द्वारा छोटे चित्रों को बड़ा करके पर्दे पर प्रदर्शित किया जाता है । इसमें पारदर्शी शीशे की स्लाइड प्रयोग में लाई जाती हैं ।
2. एपिस्कोप – इस उपकरण द्वारा पुस्तक, पत्रिका आदि के चित्र, रेखाचित्र तथा ग्राफ आदि के सूक्ष्म रूप को पर्दे पर बड़ा करके दिखाया जाता हैं । इसमें स्लाइड बनाने की आवश्यकता नही पड़ती
3. एपिडायस्कोप – इस यंत्र द्वारा मैजिक लेण्टर्न तथा एपिस्कोप दोनों के काम किए जाते हैं ।
4. प्रतिमान (माडल) — जब प्रत्यक्ष वस्तु बहुत बड़ी हो, कि कक्षा में लाना असंभव हो, अथवा इतनी छोटी हो कि दिखाई ही न पड़े, तब माडल का प्रयोग किया जाता है । इंजन, हवाई जहाज, छोटे जीव जन्तु, जीवाणु, इलैक्ट्रोनिक सामान, मानव ह्रदय आदि का अध्ययन माडल के सहयोग से किया जाता हैं ।

गणित शिक्षण की विधियाँ
1. छोटी कक्षाओं के लिए गणित शिक्षण की उपयुक्त विधि – खेल मनोरंजन विधि
2. रेखा गणित शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – विश्लेषण विधि
3. बेलनाकार आकृति के शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन निगमन विधि
4. नवीन प्रश्न को हल करने की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन विधि
5. स्वयं खोज कर अपने आप सीखने की विधि – अनुसंधान विधि
6. मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ विधि – खेल विधि
7. ज्यामिति की समस्यायों को हल करने के लिए सर्वोत्तम विधि – विश्लेषण विधि
8. सर्वाधिक खर्चीली विधि – प्रोजेक्ट विधि
9. बीजगणित शिक्षण की सर्वाधिक उपयुक्त विधि – समीकरण विधि
10. सूत्र रचना के लिए सर्वोत्तम विधि – आगमन विधि
11. प्राथमिक स्तर पर थी गणित शिक्षण की सर्वोत्तम विधि – खेल विधि
12. वैज्ञानिक आविष्कार को सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विधि – विश्लेषण विधि

गणित शिक्षण की विधियाँ : स्मरणीय तथ्य
1. शिक्षण एक त्रि – ध्रुवी प्रक्रिया है जिसका प्रथम ध्रुव शिक्षण उद्देश्य, द्वितीय अधिगम तथा तृतीय मूल्यांकन है ।
2. व्याख्यान विधि में शिक्षण का केन्द्र बिन्दु अध्यापक होता है, वही सक्रिय रहता है ।
3. बड़ी कक्षाओं में जब किसी के जीवन परिचय या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित कराना है, वहाँ व्याख्यान विधि उत्तम है ।
4. प्राथमिक स्तर पर थी गणित स्मृति केन्द्रित होना चाहिए जिसका आधार पुनरावृति होता हैं ।

गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य व अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन 
1. ज्ञान – छात्र गणित के तथ्यों, शब्दों, सूत्रों, सिद्धांतों, संकल्पनाओं, संकेत, आकृतियों तथा विधियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
व्यवहारगत परिवर्तन –
A. छात्र तथ्यों, परिभाषाएँ, सिद्धांतों आदि में त्रुटियों का पता लगाकर उनका सुधार करता हैं ।
B. तथ्यों तथा सिद्धांतों के आधार पर साधारण निष्कर्ष निकालता हैं ।
C. गणित की भाषा, संकेत, संख्याओं, आकृतियों आदि को भली भांति पहचानता एवं जानता हैं ।
2. अवबोध — संकेत, संख्याओं, नियमों, परिभाषाओं आदि में अंतर तथा तुलना करना, तथ्यों तथा आकृतियों का वर्गीकरण करना सीखते हैं ।
3. कुशलता — विधार्थी गणना करने, ज्यामिति की आकृतियों, रेखाचित्र खींचने मे, चार्ट आदि को पढ़ने में निपुणता प्राप्त कर सकेंगे । छात्र गणितीय गणनाओं को सरलता व शीघ्रता से कर सकेंगे । ज्यामितीय आकृतियों, लेखाचित्र, तालिकाओं, चार्टों आदि को पढ़ तथा खींच सकेंगे ।
4. ज्ञानापयोग —
A. छात्र ज्ञान और संकल्पनाओं का उपयोग समस्याओं को हल कर सकेंगे ।
B. छात्र तथ्यों की उपयुक्तता तथा अनुपयुक्तता की जांच कर सकेगा
C. नवीन परिस्थितियों में आने वाली समस्यायों को आत्मविश्वास के साथ हल कर सकेगा ।
5. रूचि :–
A. गणित की पहेलियों को हल कर सकेगा ।
B. गणित संबंधी लेख लिख सकेगा ।
C. गणित संबंधित सामग्री का अध्ययन करेगा ।
D. गणित के क्लब में भाग ले सकेगा ।
6. अभिरुचि :–
A. विधार्थी गणित के अध्यापक को पसंद कर सकेगा ।
B. गणित की परीक्षाओं को देने में आनन्द पा सकेगा ।
C. गणित की विषय सामग्री के बारे में सहपाठियों से चर्चा कर सकेगा ।
D. कमजोर विधार्थियों को सीखाने में मदद कर सकेगा ।
7. सराहनात्मक (Appreciation objectives)
A. छात्र दैनिक जीवन में गणित के महत्व एवं उपयोगिता की प्रशंसा कर सकेगा ।
B. गणितज्ञों के जीवन में व्याप्त लगन एवं परिश्रम को श्रद्धा की दृष्टि से देख सकेगा ।

विधियाँ —-
समस्या समाधान विधि — 1. गणित अध्यापन की यह प्राचीनतम विधि है ।
2. अध्यापक इस विधि में विधार्थियों के समक्ष समस्यायों को प्रस्तुत करता हैं तथा विधार्थी सीखे हुए सिद्धांतों, प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या हल करते हैं ।
समस्या प्रस्तुत करने के नियम —
1. समस्या बालक के जीवन से संबंधित हो ।
2. उनमें दिए गए तथ्यों से बालक अपरिचित नहीं होने चाहिए ।
3. समस्या की भाषा सरल व बोधगम्य होनी चाहिए ।
4. समस्या का निर्माण करते समय बालकों की आयु एवं रूचियों का भी ध्यान रखना चाहिए ।
5. समस्या लम्बी हो तो उसके दो – तीन भाग कर चाहिए ।
6. नवीन समस्या को जीवन पर आधारित समस्याओं के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए ।
समस्या निवारण विधि के गुण –
1. इस विधि से छात्रों में समस्या का विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता हैं ।
2. इससे सही चिंतन तथा तर्क करने की आदत का विकास होता है ।
3. उच्च गणित के अध्ययन में यह विधि सहायक हैं ।
4. समस्या के द्वारा विधार्थियों को जीवन से संबंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं ।
समस्या समाधान विधि के दोष
1. जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिए संभव नहीं हैं ।
2. बीज गणित तथा ज्यामिति ऐसे अनेक उप विषय हैं जिसमें जीवन से संबंधित समस्यायों का निर्माण संभव नही हैं

खेल विधि — 1. खेल पद्धति के प्रवर्तक हैनरी काल्डवैल कुक हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक प्ले वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी शिक्षण हेतु बतायी हैं ।
2. सबसे पहले महान शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल ने खेल के महत्व को स्वीकार करके शिक्षा को पूर्ण रूप से खेल केन्द्रित बनाने का प्रयत्न किया था ।
3. फ्रोबेल ने इस बात पर जोर दिया कि विधार्थियों को संपूर्ण ज्ञान खेल – खेल में दिया जाना चाहिए ।
खेल में बालक की स्वाभाविक रूचि होती हैं ।
4. गणित की शिक्षा देने के लिए खेल विधि का सबसे अच्छा उपयोग इंग्लैंड के शिक्षक हैनरी काल्डवैल कुक ने किया था ।
खेल विधि के गुण —
1. मनोवैज्ञानिक विधि – खेल में बच्चें की स्वाभाविक रूचि होती है और वह खेल आत्मप्रेरणा से खेलता है । अतः इस विधि से पढ़ाई को बोझ नहीं समझता ।
2. सर्वांगीण विकास — खेल में गणित संबंधी गणनाओं और नियमों का पूर्ण विकास होता है । इसके साथ साथ मानवीय मूल्यों का विकास भी होता हैं ।
3. क्रियाशीलता – यह विधि करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
4. सामाजिक दृष्टिकोण का विकास – इस विधि में पारस्परिक सहयोग से काम करने के कारण सामाजिकता का विकास होता हैं ।
5. स्वतंत्रता का वातावरण – खेल में बालक स्वतंत्रतापूर्वक खुले ह्रदय व मस्तिष्क से भाग लेता हैं ।
6. रूचिशील विधि – यह विधि गणित की निरसता को समाप्त कर देती हैं ।
खेल विधि के दोष –
1. शारीरिक शिशिलता
2. व्यवहार में कठिनाई
3. मनोवैज्ञानिक विलक्षणता

आगमन विधि — 1. इस शिक्षा प्रणाली में उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियम का निर्धारण किया जाता है, को आगमन शिक्षण विधि कहते हैं 2. यह विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर शिक्षा सूत्र पर आधारित है ।
3. इसमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ा जाता है । उदाहरण स्थूल है, नियम सूक्ष्म ।
आगमन विधि के गुण —
1. यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है । इससे नवीन ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है और यह अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।
2. इस विधि में विशेष से सामान्य की ओर और स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने के कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं ।
3. नियमों को स्वयं निकाल सकने पर छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता हैं ।
4. इस विधि में रटने की प्रवृत्ति को जन्म नहीं मिलता हैं । अतः छात्रों को स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है ।
5. यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी और रोचक हैं ।
आगमन विधि के दोष —
1. यह विधि बड़ी कक्षाओं और सरल अंशों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं ।
2. आजकल की कक्षा पद्धति के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर देना पड़ता है ।
3. छात्र और अध्यापक दोनों को ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है ।

निगमन विधि 
1. इस विधि में अध्यापक किसी नियम का सीधे ढ़ंग से उल्लेख करके उस पर आधारित प्रश्नों को हल करने और उदाहरणों पर नियमों को लागू करने का प्रयत्न करता हैं ।
2. इस विधि में छात्र नियम स्वयं नही निकालते, वे नियम उनकों रटा दिए जाते हैं और कुछ प्रश्नों को हल करके दिखा दिया जाता है
निगमन विधि के गुण —
1. बड़ी कक्षाओं में तथा छोटी कक्षाओं में भी किसी प्रकरण के कठिन अंशों को पढ़ाने के लिए यह विधि सर्वोत्तम है ।
2. यह विधि कक्षा पद्धति के लिए सबसे अधिक उपयोगी है ।
3. ज्ञान की प्राप्ति काफी तीव्र होती है । कम समय में ही अधिक ज्ञान दिया जाता है ।
4. ऊँची कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे नियम को तुरंत समझ लेते है ।
5. इस विधि में छात्र तथा शिक्षक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है ।
6. इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है ।
निगमन विधि के दोष —
1. निगमन विधि सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ने के कारण शिक्षा सिद्धांत के प्रतिकूल है । यह विधि अमनोवैज्ञानिक है ।
2. इस विधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं ।
3. इसके माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा नही होता ।
4. नियम के लिए इस पद्धति में दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, इसलिएइस विधि से सीखने में न आनंद मिलता है और न ही आत्मविश्वास बढ़ता हैं ।
आगमन तथा निगमन विधि में तुलनात्मक निष्कर्ष —
1. आगमन विधि निगमन विधि से अधिक मनोवैज्ञानिक हैं ।
2. प्रारंभिक अवस्था में आगमन विधि अधिक उपयुक्त है परन्तु उच्च कक्षाओं में निगमन विधि अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी सहायता से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।

विश्लेषण विधि (Analytic Method) —
1. विश्लेषण शब्द का अर्थ है – किसी समस्या को हल करने के लिए उसे टुकड़ों बांटना, इकट्ठी की गई वस्तु के भागों को अलग – अलग करके उनका परीक्षण करना विश्लेषण है ।
2. यह एक अनुसंधान की विधि है जिसमें जटिल से सरल, अज्ञात से ज्ञात तथा निष्कर्ष से अनुमान की ओर बढ़ते हैं ।
3. इस विधि में छात्र में तर्कशक्ति तथा सही ढंग से निर्णय लेने की आदत का विकास होता हैं ।
उदाहरण :- एक विधार्थी के गणित, विधान तथा अंग्रेजी के अंको का औसत 15 था । संस्कृत, हिन्दी तथा सामाजिक के अंको का औसत 30 था तो बताओ 6 विषयों के अंको का औसत क्या था ?
विश्लेषण की प्रक्रिया तथा संभावित उत्तर —
1. प्रश्न में क्या दिया हैं ?
गणित, विज्ञान तथा अंग्रेजी के अंकों का औसत = 15
2. और क्या दिया है ?
बाकि तीन विषयों का औसत = 30
3. क्या ज्ञात करना है ?
6 विषयों के अंकों का औसत ?
4. सभी विषयों का औसत कैसे निकाल सकते हैं ?
जब सभी विषयों के अंकों का योग ज्ञात हो ।
5. पहले तीन विषयों के अंकों का योग कब ज्ञात हो सकता है ?
जब उनका औसत ज्ञात हो ।
6. अगले तीन विषयों का योग कब ज्ञात किया जा सकता हैं ?
जब उनका औसत ज्ञात हो ।

संश्लेषण विधि 
1. संश्लेषण विधि विश्लेषण विधि के बिल्कुल विपरीत हैं ।
2. संश्लेषण का अर्थ है उस वस्तु को जिसको छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया है, उसे पुन: एकत्रित कर देना है ।
3. इस विधि में किसी समस्या का हल एकत्रित करनेके लिए उस समस्या से संबंधित पूर्व ज्ञात सूचनाओं को एक साथ मिलाकर समस्या को हल करने का प्रयत्न किया जाता है ।
विश्लेषण – संश्लेषण विधि —
1. दोनों विधियाँ एक दूसरे की पूरक हैं ।
2. जो शिक्षक विश्लेषण द्वारा पहले समस्या का विश्लेषण कर छात्रों को समस्या के हल ढूंढने की अंतदृष्टि पैदा करता है, वही शिक्षक गणित का शिक्षण सही अर्थ में करता हैं ।
3. “संश्लेषण विधि द्वारा सूखी घास से तिनका निकाला जाता है किंतु विश्लेषण विधि से तिनका स्वयं घास से बाहर निकल आया है ।” – प्रोफेसर यंग । अर्थात संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर होते हैं, और विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर ।

योजना विधि
1. इस विधि का प्रयोग सबसे पहले शिक्षाशास्त्री किलपैट्रिक ने किया जो प्रयोजनवादी शिक्षाशास्त्री थे ।
2. उनके अनुसार शिक्षा सप्रयोजन होनी चाहिए तथा अनुभवों द्वारा सीखने को प्रधानता दी जानी चाहिए ।
योजना विधि के सिद्धांत —
1. समस्या उत्पन्न करना
2. कार्य चुनना
3. योजना बनाना
4. योजना कार्यान्वयन
5. कार्य का निर्णय
6. कार्य का लेखा
योजना विधि के गुण —
1. बालकों में निरिक्षण, तर्क, सोचने और सहज से किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता हैं ।
2. क्रियात्मक तथा सृजनात्मक शक्ति का विकास होता हैं ।
योजना विधि के दोष –
इस विधि से सभी पाठों को नही पढ़ाया जा सकता ।
क्या आप जानते है ?
1. गणित सभी विज्ञानों का प्रवेश द्वार एवं कुंजी हैं – बैकन
2. गणित संस्कृति का दर्पण है – हाॅग बैन
3. तार्किक चिंतन के लिए गणित एक शक्तिशाली साधन है – बर्नार्ड शाॅ
4. गणित क्या है, यह उस मानव चिंतन का प्रतिफल है, जो अनुभवों से स्वतन्त्र तथा सत्य के अनुरूप है – आइन्सटीन
5. गणित एक विज्ञान है जिसकी सहायता से आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं – पियर्स
6. आगमन विधि गणित में सूत्रों की स्थापना हेतु उत्तम विधि हैं । आगमन विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर सिद्धांत लागू होता हैं ।
7. विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर अग्रसर हैं ।
8. त्रिकोणमिति गणित में मौखिक कार्य का सर्वाधिक महत्व छात्रों के मानसिक विकास करने में हैं ।
9. यदि विज्ञान की रीढ़ की हड्डी गणित हटा दिया जाए, तो सम्पूर्ण भौतिक सभ्यता निःसंदेह नष्ट हो जाएगी – यंग

CTET Maths Pedagogy....

CTET Maths Pedagogy....
गणित शिक्षण की विधियाँ
1. छोटी कक्षाओं के लिए गणित शिक्षण की उपयुक्त विधि - खेल मनोरंजन विधि
2. रेखा गणित शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि - विश्लेषण विधि
3. बेलनाकार आकृति के शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि - आगमन निगमन विधि
4. नवीन प्रश्न को हल करने की सर्वश्रेष्ठ विधि - आगमन विधि
5. स्वयं खोज कर अपने आप सीखने की विधि - अनुसंधान विधि
6. मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ विधि - खेल विधि
7. ज्यामिति की समस्यायों को हल करने के लिए सर्वोत्तम विधि - विश्लेषण विधि
8. सर्वाधिक खर्चीली विधि - प्रोजेक्ट विधि
9. बीजगणित शिक्षण की सर्वाधिक उपयुक्त विधि - समीकरण विधि
10. सूत्र रचना के लिए सर्वोत्तम विधि - आगमन विधि
11. प्राथमिक स्तर पर थी गणित शिक्षण की सर्वोत्तम विधि - खेल विधि
12. वैज्ञानिक आविष्कार को सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विधि - विश्लेषण विधि
गणित शिक्षण की विधियाँ : स्मरणीय तथ्य
1. शिक्षण एक त्रि - ध्रुवी प्रक्रिया है जिसका प्रथम ध्रुव शिक्षण उद्देश्य, द्वितीय अधिगम तथा तृतीय मूल्यांकन है ।
2. व्याख्यान विधि में शिक्षण का केन्द्र बिन्दु अध्यापक होता है, वही सक्रिय रहता है ।
3. बड़ी कक्षाओं में जब किसी के जीवन परिचय या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित कराना है, वहाँ व्याख्यान विधि उत्तम है ।
4. प्राथमिक स्तर पर थी गणित स्मृति केन्द्रित होना चाहिए जिसका आधार पुनरावृति होता हैं ।
गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य व अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन ----
1. ज्ञान - छात्र गणित के तथ्यों, शब्दों, सूत्रों, सिद्धांतों, संकल्पनाओं, संकेत, आकृतियों तथा विधियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
व्यवहारगत परिवर्तन -
A. छात्र तथ्यों, परिभाषाएँ, सिद्धांतों आदि में त्रुटियों का पता लगाकर उनका सुधार करता हैं ।
B. तथ्यों तथा सिद्धांतों के आधार पर साधारण निष्कर्ष निकालता हैं ।
C. गणित की भाषा, संकेत, संख्याओं, आकृतियों आदि को भली भांति पहचानता एवं जानता हैं ।
2. अवबोध -- संकेत, संख्याओं, नियमों, परिभाषाओं आदि में अंतर तथा तुलना करना, तथ्यों तथा आकृतियों का वर्गीकरण करना सीखते हैं ।
3. कुशलता -- विधार्थी गणना करने, ज्यामिति की आकृतियों, रेखाचित्र खींचने मे, चार्ट आदि को पढ़ने में निपुणता प्राप्त कर सकेंगे । छात्र गणितीय गणनाओं को सरलता व शीघ्रता से कर सकेंगे । ज्यामितीय आकृतियों, लेखाचित्र, तालिकाओं, चार्टों आदि को पढ़ तथा खींच सकेंगे ।
4. ज्ञानापयोग --
A. छात्र ज्ञान और संकल्पनाओं का उपयोग समस्याओं को हल कर सकेंगे ।
B. छात्र तथ्यों की उपयुक्तता तथा अनुपयुक्तता की जांच कर सकेगा
C. नवीन परिस्थितियों में आने वाली समस्यायों को आत्मविश्वास के साथ हल कर सकेगा ।
5. रूचि :--
A. गणित की पहेलियों को हल कर सकेगा ।
B. गणित संबंधी लेख लिख सकेगा ।
C. गणित संबंधित सामग्री का अध्ययन करेगा ।
D. गणित के क्लब में भाग ले सकेगा ।
6. अभिरुचि :--
A. विधार्थी गणित के अध्यापक को पसंद कर सकेगा ।
B. गणित की परीक्षाओं को देने में आनन्द पा सकेगा ।
C. गणित की विषय सामग्री के बारे में सहपाठियों से चर्चा कर सकेगा ।
D. कमजोर विधार्थियों को सीखाने में मदद कर सकेगा ।
7. सराहनात्मक (Appreciation objectives)
A. छात्र दैनिक जीवन में गणित के महत्व एवं उपयोगिता की प्रशंसा कर सकेगा ।
B. गणितज्ञों के जीवन में व्याप्त लगन एवं परिश्रम को श्रद्धा की दृष्टि से देख सकेगा ।
विधियाँ ----
समस्या समाधान विधि ---
1. गणित अध्यापन की यह प्राचीनतम विधि है ।
2. अध्यापक इस विधि में विधार्थियों के समक्ष समस्यायों को प्रस्तुत करता हैं तथा विधार्थी सीखे हुए सिद्धांतों, प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या हल करते हैं ।
समस्या प्रस्तुत करने के नियम --
1. समस्या बालक के जीवन से संबंधित हो ।
2. उनमें दिए गए तथ्यों से बालक अपरिचित नहीं होने चाहिए ।
3. समस्या की भाषा सरल व बोधगम्य होनी चाहिए ।
4. समस्या का निर्माण करते समय बालकों की आयु एवं रूचियों का भी ध्यान रखना चाहिए ।
5. समस्या लम्बी हो तो उसके दो - तीन भाग कर चाहिए ।
6. नवीन समस्या को जीवन पर आधारित समस्याओं के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए ।
समस्या निवारण विधि के गुण -
1. इस विधि से छात्रों में समस्या का विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता हैं ।
2. इससे सही चिंतन तथा तर्क करने की आदत का विकास होता है ।
3. उच्च गणित के अध्ययन में यह विधि सहायक हैं ।
4. समस्या के द्वारा विधार्थियों को जीवन से संबंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं ।
समस्या समाधान विधि के दोष
1. जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिए संभव नहीं हैं ।
2. बीज गणित तथा ज्यामिति ऐसे अनेक उप विषय हैं जिसमें जीवन से संबंधित समस्यायों का निर्माण संभव नही हैं
खेल विधि
1. खेल पद्धति के प्रवर्तक हैनरी काल्डवैल कुक हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक प्ले वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी शिक्षण हेतु बतायी हैं ।
2. सबसे पहले महान शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल ने खेल के महत्व को स्वीकार करके शिक्षा को पूर्ण रूप से खेल केन्द्रित बनाने का प्रयत्न किया था ।
3. फ्रोबेल ने इस बात पर जोर दिया कि विधार्थियों को संपूर्ण ज्ञान खेल - खेल में दिया जाना चाहिए ।
खेल में बालक की स्वाभाविक रूचि होती हैं ।
4. गणित की शिक्षा देने के लिए खेल विधि का सबसे अच्छा उपयोग इंग्लैंड के शिक्षक हैनरी काल्डवैल कुक ने किया था ।
खेल विधि के गुण --
1. मनोवैज्ञानिक विधि - खेल में बच्चें की स्वाभाविक रूचि होती है और वह खेल आत्मप्रेरणा से खेलता है । अतः इस विधि से पढ़ाई को बोझ नहीं समझता ।
2. सर्वांगीण विकास -- खेल में गणित संबंधी गणनाओं और नियमों का पूर्ण विकास होता है । इसके साथ साथ मानवीय मूल्यों का विकास भी होता हैं ।
3. क्रियाशीलता - यह विधि करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
4. सामाजिक दृष्टिकोण का विकास - इस विधि में पारस्परिक सहयोग से काम करने के कारण सामाजिकता का विकास होता हैं ।
5. स्वतंत्रता का वातावरण - खेल में बालक स्वतंत्रतापूर्वक खुले ह्रदय व मस्तिष्क से भाग लेता हैं ।
6. रूचिशील विधि - यह विधि गणित की निरसता को समाप्त कर देती हैं ।
खेल विधि के दोष -
1. शारीरिक शिशिलता
2. व्यवहार में कठिनाई
3. मनोवैज्ञानिक विलक्षणता
आगमन विधि
1. इस शिक्षा प्रणाली में उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियम का निर्धारण किया जाता है, को आगमन शिक्षण विधि कहते हैं 2. यह विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर शिक्षा सूत्र पर आधारित है ।
3. इसमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ा जाता है ।
उदाहरण स्थूल है, नियम सूक्ष्म ।
आगमन विधि के गुण --
1. यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है । इससे नवीन ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है और यह अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।
2. इस विधि में विशेष से सामान्य की ओर और स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने के कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं ।
3. नियमों को स्वयं निकाल सकने पर छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता हैं ।
4. इस विधि में रटने की प्रवृत्ति को जन्म नहीं मिलता हैं । अतः छात्रों को स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है ।
5. यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी और रोचक हैं ।
आगमन विधि के दोष --
1. यह विधि बड़ी कक्षाओं और सरल अंशों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं ।
2. आजकल की कक्षा पद्धति के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर देना पड़ता है ।
3. छात्र और अध्यापक दोनों को ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है ।
निगमन विधि
1. इस विधि में अध्यापक किसी नियम का सीधे ढ़ंग से उल्लेख करके उस पर आधारित प्रश्नों को हल करने और उदाहरणों पर नियमों को लागू करने का प्रयत्न करता हैं ।
2. इस विधि में छात्र नियम स्वयं नही निकालते, वे नियम उनकों रटा दिए जाते हैं और कुछ प्रश्नों को हल करके दिखा दिया जाता है ।
निगमन विधि के गुण --
1. बड़ी कक्षाओं में तथा छोटी कक्षाओं में भी किसी प्रकरण के कठिन अंशों को पढ़ाने के लिए यह विधि सर्वोत्तम है ।
2. यह विधि कक्षा पद्धति के लिए सबसे अधिक उपयोगी है ।
3. ज्ञान की प्राप्ति काफी तीव्र होती है । कम समय में ही अधिक ज्ञान दिया जाता है ।
4. ऊँची कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे नियम को तुरंत समझ लेते है ।
5. इस विधि में छात्र तथा शिक्षक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है ।
6. इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है ।
निगमन विधि के दोष --
1. निगमन विधि सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ने के कारण शिक्षा सिद्धांत के प्रतिकूल है । यह विधि अमनोवैज्ञानिक है ।
2. इस विधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं ।
3. इसके माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा नही होता ।
4. नियम के लिए इस पद्धति में दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, इसलिएइस विधि से सीखने में न आनंद मिलता है और न ही आत्मविश्वास बढ़ता हैं ।
आगमन तथा निगमन विधि में तुलनात्मक निष्कर्ष --
1. आगमन विधि निगमन विधि से अधिक मनोवैज्ञानिक हैं ।
2. प्रारंभिक अवस्था में आगमन विधि अधिक उपयुक्त है परन्तु उच्च कक्षाओं में निगमन विधि अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी सहायता से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।
विश्लेषण विधि (Analytic Method) --
1. विश्लेषण शब्द का अर्थ है - किसी समस्या को हल करने के लिए उसे टुकड़ों बांटना, इकट्ठी की गई वस्तु के भागों को अलग - अलग करके उनका परीक्षण करना विश्लेषण है ।
2. यह एक अनुसंधान की विधि है जिसमें जटिल से सरल, अज्ञात से ज्ञात तथा निष्कर्ष से अनुमान की ओर बढ़ते हैं ।
3. इस विधि में छात्र में तर्कशक्ति तथा सही ढंग से निर्णय लेने की आदत का विकास होता हैं ।
उदाहरण :-
एक विधार्थी के गणित, विधान तथा अंग्रेजी के अंको का औसत 15 था । संस्कृत, हिन्दी तथा सामाजिक के अंको का औसत 30 था तो बताओ 6 विषयों के अंको का औसत क्या था ?
विश्लेषण की प्रक्रिया तथा संभावित उत्तर --
1. प्रश्न में क्या दिया हैं ?
गणित, विज्ञान तथा अंग्रेजी के अंकों का औसत = 15
2. और क्या दिया है ?
बाकि तीन विषयों का औसत = 30
3. क्या ज्ञात करना है ?
6 विषयों के अंकों का औसत ?
4. सभी विषयों का औसत कैसे निकाल सकते हैं ?
जब सभी विषयों के अंकों का योग ज्ञात हो ।
5. पहले तीन विषयों के अंकों का योग कब ज्ञात हो सकता है ?
जब उनका औसत ज्ञात हो ।
6. अगले तीन विषयों का योग कब ज्ञात किया जा सकता हैं ?
जब उनका औसत ज्ञात हो ।
संश्लेषण विधि
1. संश्लेषण विधि विश्लेषण विधि के बिल्कुल विपरीत हैं ।
2. संश्लेषण का अर्थ है उस वस्तु को जिसको छोटे - छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया है, उसे पुन: एकत्रित कर देना है ।
3. इस विधि में किसी समस्या का हल एकत्रित करनेके लिए उस समस्या से संबंधित पूर्व ज्ञात सूचनाओं को एक साथ मिलाकर समस्या को हल करने का प्रयत्न किया जाता है ।
विश्लेषण - संश्लेषण विधि --
1. दोनों विधियाँ एक दूसरे की पूरक हैं ।
2. जो शिक्षक विश्लेषण द्वारा पहले समस्या का विश्लेषण कर छात्रों को समस्या के हल ढूंढने की अंतदृष्टि पैदा करता है, वही शिक्षक गणित का शिक्षण सही अर्थ में करता हैं ।
3. "संश्लेषण विधि द्वारा सूखी घास से तिनका निकाला जाता है किंतु विश्लेषण विधि से तिनका स्वयं घास से बाहर निकल आया है ।" - प्रोफेसर यंग । अर्थात संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर होते हैं, और विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर ।
योजना विधि
1. इस विधि का प्रयोग सबसे पहले शिक्षाशास्त्री किलपैट्रिक ने किया जो प्रयोजनवादी शिक्षाशास्त्री थे ।
2. उनके अनुसार शिक्षा सप्रयोजन होनी चाहिए तथा अनुभवों द्वारा सीखने को प्रधानता दी जानी चाहिए ।
योजना विधि के सिद्धांत --
1. समस्या उत्पन्न करना
2. कार्य चुनना
3. योजना बनाना
4. योजना कार्यान्वयन
5. कार्य का निर्णय
6. कार्य का लेखा
योजना विधि के गुण --
1. बालकों में निरिक्षण, तर्क, सोचने और सहज से किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता हैं ।
2. क्रियात्मक तथा सृजनात्मक शक्ति का विकास होता हैं ।
योजना विधि के दोष -
इस विधि से सभी पाठों को नही पढ़ाया जा सकता ।

गणित की शिक्षण विधियां – Mathematics Teaching Methods

जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। “शिक्षण विधि” पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं।

गणित शिक्षण विधियों के प्रकार-

  1. आगमन विधि (Inductive Method)
  2. निगमन विधि (Deductive Method)
  3. विश्लेषण विधि (Analytical Method)
  4. संस्लेषण विधि (Synthesis Method)
  5. प्रयोगशाला विधि (Lab/ Laboratory Method)
  6. अनुसंधान विधि (Heuristic Method)
  7. समस्य़ा समाधान विधि (Problem Solving Method)
  8. प्रयोजन विधि (Project Method)
  9. व्याख्यान विधि (Lecture Method)
  10. विचारविमर्श विधि (Discussion Method)

1. आगमन विधि ( Inductive Method) :-

इस विधि में प्रत्यक्ष अनुभवों, उदाहरणों तथा प्रयोगों का अध्ययन कर नियम निकाले जाते है तथा ज्ञात तथ्यों के आधार पर उचित सूझ बुझ से निर्णय लिया जाता है| इसमें शिक्षक छात्रों को अध्ययन
(क). प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर,
(ख). स्थूल से सूक्ष्म की ओर, एवं
(ग). विशिष्ट से सामान्य की ओर 
करवाते है|

आगमन विधि मे प्रयुक्त चरण ( Steps of Inductive Method)-

  1. सर्वप्रथम हम एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। (Example)
  2. उस उदाहरण का निरीक्षण किया जाता है। ( Observation)
  3. उस उदाहरण के आधार पर एक नियम बनाया जाता है, जिसे सामान्यीकरण कहा जाता है। (Generalization)
  4. उस सामान्य नियम का परीक्षण करके उसका सत्यापन किया जाता है। ( Testing and verification)

आगमन विधि के गुण

  1. एक वैज्ञानिक विधि है, जिससे बालकों में नवीन ज्ञान को खोजनें का मौका उपलब्ध कराता है।
  2. ज्ञात से अज्ञात की ओर, सरल से जटिल की ओर चलकर बालकों से मूर्त उदाहरणों से सामान्य नियम निकलवाये जाते है, जिससे बालकों में ज्ञिज्ञासा बनी रही रहती है।
  3. स्वयं से अधिगम करनें के कारण अधिगम अधिक स्थाई रहता है।
  4. बालक स्वयं ही समस्या का निवारण अपनें विश्लेषण से प्राप्त करते हैं जिससे उनका अधिगम स्थाई रहता है।
  5. व्यवहारिक और जीवन में लाभप्रद विधि है।

आगमन विधि के दोष

  1. समय अधिक लगता है।
  2. अधिक परिश्रम और सूझ की आवश्यकता रहती है।
  3. एक तरह से अपूर्ण विधि है, क्योंकि खोजे गये नियमों या तथ्यों कीजांच के लिए निगमन विधि की जरूरत होती है।
  4. बालक यदि किसी अशुद्ध नियम की प्राप्ति कर ले तो उसे सत्य को प्राप्त करनें में अधिक श्रम व समय की जरूरत होती है।

2. निगमन विधि Deductive Method-

इस विधि में पहले से स्थापित नियमों व सूत्रों का प्रयोग करके अध्यापक छात्रों को समस्या का समाधान करना सीखाते हैं।
  1. नियम से उदाहरण की ओर
  2. सामान्य से विशिष्ट की ओर,
  3. सूक्ष्म से स्थूल की ओर. एवं
  4. प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर 
    चलती है|

निगमन विधि के गुणProperties of Deductive Method_

  1. यह एक सरल और सुविधाजनक विधि है,
  2. स्मरणशक्ति के विकास में सहायक है।
  3. संक्षिप्त और व्यवहारिक विधि है।
  4. बालक तेजी से सीखता है।

निगमन विधि के दोष

  1. रटनें की शक्ति पर बल देती है।
  2. निजी विश्लेषण क्षमता का प्रयोग न करनें के कारण मानसिक विकास और कल्पना शक्ति का विकास बाधित होता है।
  3. रटा हुआ ज्ञान स्थाई नहीं रह पाता है।
  4. छोटी कक्षाओं के लिए सर्वथा अनुपयुक्त विधि

3. विश्लेषण विधि ( Analytical Method):- 

किसी विधान या व्यवस्थाक्रम की सूक्ष्मता से परीक्षण करने की तथा उसके मूल तत्वों को खोजने की क्रिया को विश्लेषणनाम दिया जाता है।

  • यह विधि अज्ञात से ज्ञात की ओर चलती है।
  • इसका प्रयोग रेखागणित में प्रमेय, निर्मेय आदि को सिद्ध करनें में प्रयुक्त होता है.
  • जैसे पाइथागोरस का प्रयोग
  • कर्ण का वर्ग = आधार का वर्ग + लम्ब पर बना वर्ग

विश्लेषण विधि के गुण

  • यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है, जो बालको में जिज्ञासा उत्पन्न कर उनमें अध्ययन के प्रति रूचि उत्पन्न करती है।
  • स्वयं समस्या का समाधान करने ,हल खोजनें पर बल देती है।
  • अन्वेषण क्षमता अर्थात खोज करनें की क्षमता का विकास होता है।
  • स्थाई ज्ञान उत्पन्न होता है।

विश्लेषण विधि के दोष

  • अधिक समय लेनें वाली विधि है।
  • कुशल अध्यापन की जरूरत होती है।
  • अधिक तर्क शक्ति, सूझ शक्ति की जरूरत होती है।
  • छोटी कक्षा के बालकों के लिए अनुपयोगी मानी जाती है।

4. संश्लेषण विधि Synthesis Method-

संश्लेषण का अर्थ होता हैअनेक को एक करना, अर्थात इस विधि में कई विधियों का उपयोग करके समस्या का समाधान करनें पर बल दिया जाता है।
हिंदी पढ़ाने में पहले वर्णमाला सिखाकर तब शब्दों का ज्ञान कराया जाता है। तत्पश्चात् शब्दों से वाक्य बनवाए जाते हैं।

संश्लेषण विधि के गुण-

  1. ज्ञात से अज्ञात की ओर ले जाती है, अर्थात ज्ञात नियमो का प्रयोग करके अज्ञात परिणाम की प्राप्ति की जाती है।
उदाहरण
एक वृत्त की त्रिज्या 9 सेमी है, वृत का क्षेत्रफल क्या होगा।
  1. सरल और सुविधाजनक विधि मानी जाती है।
  2. समस्या का समाधान तीव्रता से संभव है।
  3. स्मरणशक्ति के विकास में सहयोग करती है।
  4. ज्यादातर गणितीय समस्याओं का समाधान इसी विधि के उपयोग से किया जाता है।

संश्लेषण विधि के दोष

  1. रटनें की प्रवृति पर जोर देती है, जिससे अन्वेषण क्षमता के विकास का मौका उपलब्ध नहीं होता है।
  2. नवीन ज्ञान, तार्किक क्षमता और चिन्तन रहित विधि है, अर्थात इनके विकास में सहयोग नहीं करती है।
  3. अर्जित ज्ञान अस्थाई होता है, अर्थात जब तक सूत्र याद है तभी तक समस्या का हल निकाला जा सकता है.
  4. छोटे बालकों में चिन्तन शक्ति का ह्रास करती है।

5. प्रयोगशाला विधि (Lab / Laboratory Method)-

इस विधि के प्रयोग के लिए हमें एक प्रयोगशाला की जरूरत होती है, जिसमें हम समस्याओं को यांत्रिक तरीकों से हल करते हैं।
जैसेपाइथागोरस प्रमेय को प्रयोगशाला में सिद्ध करना।

प्रयोगशाला विधि के गुण

  1. रूचिकर विधि है।
  2. स्थाई अधिगम का स्रोत
  3. तर्क क्षमता निगमन क्षमता का विकास होता है।
  4. रचनात्मकता का विकास होता है।

प्रयोगशाला विधि के दोष

  1. खर्चीली विधि है।
  2. कम संख्या वाली कक्षा के लिए ही उपयोग में लाई जा सकती है।
  3. छोटे उम्र के बच्चों में रूचि उत्पन्न नहीं कर पाती है।

6. असंधान विधि Heuristic Method-

बोधपूर्वक किये गये प्रयत्न से तथ्यों को संकलित करके सूक्ष्मग्राही तथा विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन या विश्लेषण करके नये तथ्य या सिद्धान्तों की खोज करना ही अनुसंधान विधि है।

7. समस्या समाधान विधि Problem Solving Method-

किसी समस्या का समाधान या हल प्राप्त करनें के लिए क्रमबद्ध तरीके से किसी सामान्य विधि या तदर्थ ( AD HOC) विधि का प्रयोग करना पड़ता है, समस्या समाधान अधिगम के अन्तर्गत ( Learning by solving problem) के अन्तर्गत जीवन में आनें वाली नवीन समस्याओं के तरीको का हल निकालना संभव होता है।

8. प्रयोजन विधि Project Method-

इस विधि में किसी भी समस्या के समाधान के लिए छात्र स्वयं किसी भी समस्या का समाधान अपनीं स्वाभाविक तर्कशक्ति के द्वारा जानकारी प्राप्त करता है, तथा उससे अपनें व्यवहार मे परिवर्तन करके समस्या का हल खोजता है।
इस विधि में समस्या का हल खोजनें के लिए प्रयोजन पूर्ण कार्य किये जातै है।

9. व्याख्यान विधि Lecture Method-

यह विधि शिक्षण की सबसे प्रचलित विधि है, इसमें एक कुशल अध्यापक अपने व्याख्यान द्वारा पूरी कक्षा या एक समूह को उनकी समस्या के समाधान की विधि से परिचित कराता है।

10. विचारविमर्श विधि Discussion Method-

इस विधि में बालक व अध्यापक अपने तर्कों द्वारा अपनीं समस्याओं को एक दूसरे के अनुभव व ज्ञान के आधार पर सुलझानें का प्रयास करते हैं।


General science biology

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