एरिक्सन का मनोसामाजिक विकास का सिद्धांत
एरिक्सन ने मनोसामाजिक विकास की 8 अवस्थाएं बताई है जिनसे व्यक्ति
गुजरता है- एरिक्सन का मानना था कि प्रत्येक अवस्था की दो विरोधी विशेषताएं
होती है|1 विश्वास बनाम अविश्वास– (जीवन का प्रथम वर्ष)- इस अवस्था में शिशु विश्वास करना सिखता है अगर हम उसका सही तरह से ख्याल नहीं रख पाते है तो उसमे अविश्वाश की भावना भी पैदा हो सकती है| बालक मुख्य रूप से अपनी माँ और अपने परिवार के प्रति विश्वाश रखता है| सुरक्षा की भावना का विकास|
2 स्वशासन बनाम लज्जा- (2-3 वर्ष)- इस अवस्था में शिशु में स्वं के प्रति अनुशासन की भावना विकसित हो जाती है, वह अपने शरीर पर नियंत्रण रखना सिख जाता है| यदि माता-पिता के द्वारा बालक का ख्याल नहीं रखा जाता है या ज्यादा ही ख्याल रखा जाता है तो बलाक के अन्दर लज्जा का भाव उत्पन्न हो जाता है| भय का विकास ,इच्छा शक्ति का विकास|
3 उपक्रम बनाम दोष बोध-( 4-5 वर्ष)- नए-नए सृजन करना सिखता है,आत्मविश्वास जागृत होना,जिज्ञासा प्रवृति का विकास, आत्मविश्वास की कमी|
4 परिश्रम बनाम हीनभावना– (6-11 वर्ष)- समूह में रहना सिखता है, सामाजिक विकास हो जाता है| हीन भावना का विकास|
5 पहचान बनाम पहचान का संकट- (12-18 वर्ष)- सम्माज में अलग कार्य करके अपनी पहचान बनाने की भावना का विकास, पहचान का संकट|
6 घनिष्ठता बनाम पृथकता-(18-35 वर्ष)- एक दुसरे से घनिष्टता, या अलगाव|
7 उत्पादनशीलता बनाम अवरोध– (35-65)- अपने बाद आने वाली पीढ़ी के लिए चिंता|
8 सत्यनिष्ठता बनाम निराशा- (65 से अधिक)-अपने भूतकाल के बारे में सोचकर संतुष्टि या असंतुष्टि|
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