अधिगम या प्रशिक्षण के स्थानांतरण का सामान्य अर्थ-
“ किसी एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, आदित्य दृष्टिकोणों अथवा अन्य अनुप्रयोग का किसी अन्य परिस्थिति में प्रयोग करना”अधिगम स्थानांतरण की महत्वपूर्ण परिभाषाएं-
सौरेंसन - " स्थानांतरण एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, प्रशिक्षण और आदतों का दूसरी परिस्थिति में स्थानांतरित किए जाने की चर्चा करता है|"
कार्लसनिक- " स्थानांतरण पहली परिस्थिति में प्राप्त ज्ञान, कौशल, आदित्य, दृष्टिकोण हो या अन्य क्रियाओं का दूसरी परिस्थिति में अनुप्रयोग करना है|"
इन सभी के द्वारा हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि एक परिस्थिति में सीखे हुए ज्ञान, कौशल, आदतो आदि का अन्य परिस्थिति में अनुप्रयोग ही अधिगम या प्रशिक्षण का स्थानांतरण है|
अधिगम स्थानांतरण के प्रकार -
सकारात्मक स्थानांतरण- एक परिस्थिति में अथवा एक विषय में सिखा गया ज्ञान किसी नवीन परिस्थिति या विषय को सीखने में सहायता प्रदान करता है तो उसे सकारात्मक स्थानांतरण कहते है| हैं|
उदाहरण के लिए-
जो व्यक्ति साइकिल चलाना सीख जाता है उसे बाइक चलाने में भी आसानी रहती हैं, बाइक चलाना आसानी से सीख जाता है|
नकारात्मक स्थानांतरण- जब एक परिस्थिति में सीखा गया ज्ञान, नवीन ज्ञान के सीखने में बाधा उत्पन्न करता है तो उसे नकारात्मक स्थानांतरण कहते हैं|
उदाहरण के लिए- यदि किसी अमेरिकन को, जीवन भर बाए हाथ से गाड़ी चलाई हो, अगर भारत में आ कर उसे दायां हाथ से गाड़ी चलानी पड़े तो उसका पहला प्रशिक्षण नई स्थिति में बाधा उत्पन्न करेगा|
शून्य स्थानांतरण - जब एक कार्य का प्रशिक्षण दूसरे कार्य को सीखने में न तो सहायता ही करता है और नहीं बाधा उत्पन्न करता है तो इस प्रकार की प्रशिक्षण को शून्य स्थानांतरण कहते हैं| शून्य अंतरण का एक कारण यह भी हो सकता है कि पहले कार्य की प्रकृति का दूसरे कार्य की प्रकृति से कोई संबंध ही ना हो|
जैसे- भूगोल का ज्ञान भौतिक शास्त्र की समस्या को नहीं सुलझा सकता|
अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांत-
मानसिक शक्तियों अथवा औपचारिक अनुशासन का सिद्धांत-
इस सिद्धांत के अनुसार मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार की शक्तियां होती हैं| जैसे- तर्कशक्ति, विचार शक्ति, कल्पना शक्ति, स्मरण शक्ति, निर्णय शक्ति आदि|यह सभी शक्तियां विशिष्ट प्रकार की होती हैं तथा स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं अतः इन स्वतंत्र रूप से शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए|
समान तत्व का सिद्धांत-
इस सिद्धांत का प्रतिपादन थार्नडाइक ने किया|
इनके के अनुसार एक विषय का अध्ययन दूसरे विषय के अध्ययन में सभी सहायक सिद्ध होता है जबकि इन दोनों विषयों में कुछ तत्व समान हो|सामान्यीकरण का सिद्धांत-इस सिद्धांत का प्रतिपादक जड़ है|
जड़ के अनुसार जब कोई व्यक्ति अपने किसी कार्य, ज्ञान या अनुभव से कोई सामान्य नियम या सिद्धांत निकाल लेता है तो वह दूसरी परिस्थिति में उसका प्रयोग आसानी से कर सकता है|दो तत्व सिद्धांत- इस सिद्धांत के प्रतिपादक स्पीयरमैन है|
स्पीयरमैन ने बताया कि बुद्धि दो प्रकार की होती है- सामान्य बुद्धि और विशिष्ट बुद्धि|आमतौर पर जीवन में सामान्य बुद्धि का ही उपयोग किया जाता है तथा जहाँ तक विशिष्ट बुद्धि का प्रश्न है वह हर व्यक्ति में भिन्न होती हैं| स्पीयरमैन के अनुसार अंतरण विशिष्ट योग्यता में न होकर सामान्य योग्यता में होता है|
आदर्शों का सिद्धांत-इस सिद्धांत के प्रतिपादक बागले हैं|
बागले के अनुसार अंतरण का संबंध इतना वस्तु या बातों से नहीं होता जितना की उस बात को अंतरित करने वाले व्यक्ति के आदर्शों से होता है|पूर्ण-आकार वाद सिद्धांत- इस सिद्धांत का प्रतिपादन गेस्टाल्टवादियो ने किया|
यह मनोवैज्ञानिक सूझ को अधिक महत्व देते हैं| इन के अनुसार सूझ अथवा अंतर्दृष्टि से अनुभव एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में अंतरित हो जाते हैं|स्थानांतरण का शैक्षिक महत्व-
1 अध्यापकों कक्षा में अपने विद्यार्थियों को को सामान्य सिद्धांतों की अधिक जानकारी देनी चाहिए तथा विशिष्ट सिद्धांतों की कम|2 किसी प्रत्येक को स्पष्ट करने के लिए अध्यापक को दैनिक जीवन से संबंधित पर्याप्त उदाहरण देनी चाहिए|
4 स्थानांतरण का पाठ्यक्रम निर्माण में विशेष महत्व है| अतः पाठ्यक्रम में जीवनोपयोगी विषयों को स्थान देना चाहिए|
5 छात्रों को नकारात्मक अंतरण के अवसर नहीं दिए जाने चाहिए|
6 छात्रों से अधिक से अधिक सामान्य करण करवाए जाना चाहिए|
7 शिक्षक पढ़ाते समय सहसंबंध के सिद्धांत को अपनाएं
8 शिक्षक बालकों को किताबी कीड़ा न बनाए बल्कि उन्हें कार्यानुभव के माध्यम से शिक्षा प्रदान करें|
9 छात्रों को उनकी भविष्य की योजनाओं के अनुरूप शिक्षा दी जानी चाहिए|
10 छात्रों को नियमित रूप से स्थानांतरण के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए|
11 शिक्षक को बालक की मानसिक योग्यता एवं व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार पाठ्य विषय एवं शिक्षण विधियों का चयन करना चाहिए तथा स्थानांतरण के लिए अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करनी चाहिए|
12 शिक्षक स्थानांतरण की सफलता के लिए चिंतन शक्ति का विकास तथा अध्ययन के प्रति रुचि जागृत करनी चाहिए| साथ ही, ज्ञानार्जन के लिए बालक को सदेव प्रेरित करते रहना चाहिए|
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक--
1 सीखने की इच्छा- बालक को नया ज्ञान देने से पूर्व आवश्यक है कि उसमें सीखने के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न की जाए क्योंकि ऐसा होने पर विद्यार्थी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी इसी बात को सीखने में सफल हो जाता है सीखने की इच्छा के अतिरिक्त छात्रों का आकांक्षा स्तर भी उच्च कोटि का होना चाहिए|2 शैक्षिक पृष्ठभूमि- अधिगम पर इस बात का बहुत प्रभाव पड़ता है कि सीखने वाले की शैक्षिक योग्यता क्या ? यदि शास्त्र किसी विषय में पिछड़ा है तो उस विषय से संबंधित नवीन ज्ञान सीखने में उसे कठिनाई का सामना करना पड़ेगा| यदि किसी छात्र की एक विषय में शैक्षिक योग्यता सामान्य से अधिक हैं तो छात्र उस विषय में नया ज्ञान सुगमता से सीख लेगा|
4 परिपक्वता- अधिगम की प्रक्रिया को बालक की शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता अधिक प्रभावी बनाती हैं| बहुत सी चीजें बालक तनिष्क पता है जब उसमें परिपक्वता आ जाती हैं चाहे हम उसे कितना भी प्रशिक्षण क्यों न दे|
5 अभिप्रेरणा- सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्वपूर्ण योगदान है| यदि बालक को किसी नवीनतम ज्ञान अथवा कार्य को सीखने के लिए प्रेरित नहीं किया जाता है तो वह उस क्रिया में रुचि नहीं लेगा| अभिप्रेरणा से सीखने की इच्छा प्रबल हो जाती हैं| अभिप्रेरणा उत्पन्न करने के लिए यह आवश्यक है कि बालक को उसका लक्ष्य स्पष्ट कर दिया जाए|
6 सीखने वाले की अभिवृत्ति- यदि किसी विषय के प्रति छात्र की नकारात्मक अभिवृत्ति है तो शिक्षक चाहे जितना परिश्रम करें छात्र के अधिगम में उन्नति होने की संभावना नहीं होती है|
सीखने वाले की किसी विषय के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति है तो बहुत सरलता से उस विषय को सीख जाता है| किसी विषय के प्रति सीखने वाले का रुझान बहुत महत्वपूर्ण होता है|
7 सीखने का समय तथा अवधि- यदि छात्र देर तक किसी क्रिया को करता रहता है तो वह थकान का अनुभव करने लगता है और थकान अनुभव होने से अधिगम प्रक्रिया में शिथिलता उत्पन्न हो जाती हैं| विद्यालयों में समय चक्र बनाते समय भी इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पहले कठिन विषय तथा बाद में सरल विषय पढ़ाए जाएं| मध्यांतर की भी व्यवस्था इसी उद्देश्य से की जाती हैं|
8 बुद्धि- तीव्र बुद्धि छात्र किसी भी ज्ञान को शीघ्रतम सरलता से सीख लेता है और मंद बुद्धि वाले छात्रों को सामान्य बुद्धि वाले छात्र के साथ भी सीखने में बाधा रहती हैं|
बुद्धि लब्धि तथा शैक्षिक लब्धि में उच्च सकारात्मक संबंध होता है|
शैक्षिक अनुप्रयोग-
1 विषय वस्तु को सरल से जटिल क्रम में प्रस्तुत करना|2 नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से संबंधित करना|
3 पाठ्यवस्तु को घंटा से समझने की दृष्टि से विशिष्ट से सामान्य तथा उदाहरण से नियम की ओर शिक्षण सूत्रों का प्रयोग करना|
4 एक छात्र के अधिगम का दूसरे से संबंध स्थापित करना|
5 अधिक से अधिक ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करना अर्थात करके सीखना
6 अभ्यास कार्य तथा दोहराने की व्यवस्था|
7 उपयुक्त प्रतिपुष्टि व पुनर्बलन की व्यवस्था|
8 सीखने और सिखाने की मनोवैज्ञानिक विधियों और तकनीकों का प्रयोग करना|
9 शिक्षण अधिगम संबंधी उपयुक्त परिस्थितियां एवं वातावरण तैयार करना|
10 श्रव्य दृश्य का प्रयोग करते हुए मूर्त से अमूर्त शिक्षण सूत्र का पालन करना|
11 विषय वस्तु की उद्देश्यपूर्णता को स्पष्ट करना|
12 शिक्षा के अनौपचारिक साधनों का प्रयोग करना|
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