मनुष्य सहित सभी जीवों के लिए हवा के बाद पानी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है पदार्थ है. पानी के बिना हम जीवन की कल्पना भी महीन कर सकते हैं. हम प्रतिदिन नहाने, धोने, पीने तथा अन्य कामों में पानी का उपयोग करते हैं. पानी में कुछ ऐसे विशिष्ट गुण होते हैं जिसके कारण यह महत्वपूर्ण है.
जल के स्रोत:-
पृथ्वी पर जल का सबसे बड़ा स्रोत समुद्र है जो पृथ्वी की दो तिहाई सतह पर फैले हैं. समुद्री जल खारा होता है और इसका प्रयोग कृषि और घरों में नहीं हो सकता है. नदी, झील, तालाब, कुआँ, वर्षा और हिम जल के अन्य स्रोत हैं. इनके अलावा, जल के भूमिगत स्रोत भी हैं, इन स्रोतों से प्राप्त जल पीने और भोजन पकाने के योग्य नहीं होता है. इस जल में बहुत सी अशुद्धियाँ व् रोगाणु रहते हैं, इस जल को पीने योग्य बनाने के लिए कई विधियाँ काम में लायी जाती है,
शहरों में लोग नलों से पानी प्राप्त करते हैं, नलों तक पहुँचने के लिए पानी को लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है, अधिकांश शहरों में पानी के स्रोत से पानी को पम्प के माध्यम से हौज में जमा किया जाता है. यह जल संस्थान तक ले जाया जाता है जहाँ इसे साफ किया जाता है. यहाँ पानी को चिकने कंकड़, और बालू की परतों से होकर छाना जाता है, गन्दगी बालू में ही रुक जाती है. रोगाणुओं को मारने के लिए जल में कुछ रसायन, जैसे क्लोरीन डाले जाते हैं. इस प्रकार साफ किये जल को मुख्य पाइपों द्वारा शहर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है. छोटे-छोटे पाइपों द्वारा जल प्रत्येक घर तक पहुँचाया जाता है. जिन स्थानों पर नलों से जल मिलने की सुविधा नहीं है, वहां पर लोग नदी, झील, झरनों और कुँए से जल लेते हैं, इन स्रोतों से पानी को उबालकर, छानकर और रसायन, जैसे पोटेशियम परमैगनेट, डालकर पीने योग्य बनाना चाहिए.
प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त पानी शुद्ध नहीं होता है. इसमें कुछ लवण और गैस घुले रहते हैं इन घुले हुए पदार्थों के कारण पानी में स्वाद आ जाता है. कुँए, नलकूपों और वर्षा से प्राप्त पानी में घुले पदार्थ मौजूद रहते हैं. वर्षा का पानी शुद्ध नहीं होता यद्यपि यह पीने योग्य रहता है. जब पानी में कुछ हानिकारक पदार्थ मौजूद रहता है तब पानी पिने योग्य नहीं होता. कभी कभी कुछ अघुलनशील पदार्थ भी पानी में मौजूद रहता है जिन्हें छानकर हटाया जाता है.
जिस पानी में घुले लवणों की भारी मात्रा रहती है उसे खारा पानी कहते हैं, समुद्री पानी खारा होता है किन्तु वर्षा का पानी खारा नहीं होता, अन्य स्रोतों से प्राप्त पानी भी कुछ परिस्थितियों में खारा हो सकता है.
जल के सामान्य गुण:-
1- शुद्ध जल रंगहीन, गंधहीन, स्वाधीन और पारदर्शी होता है, नदियों झीलों और कुओं से प्राप्त जल में कई प्रकार के लवण विभिन्न मात्रा में घुले रहते हैं, घुले हुए लवणों की मात्रा अधिक होने पर जल खारा हो जाता है.
2- नदियों झीलों और कुओं से प्राप्त जल में कई प्रकार के लवण विभिन्न मात्रा में घुले रहते हैं, घुले हुए लवणों की मात्रा अधिक होने पर जल खारा हो जाता है.
3-जल ठोस (बर्फ), द्रव (जल) और गैस (वाष्प) तीनों अवस्थाओं में रह सकता है
4- शुद्ध पानी 0 डिग्री सेंटीग्रेट पर जमता है तथा 100 डिग्री सेंटीग्रेट पर उबलता है
5- द्रव जल ठोस बर्फ से भारी होता है इसी कारण से वर्फ पानी के ऊपर तैरता है.
जल को गर्म करने पर 0-4 डिग्री सेंटीग्रेट तक यह सिकुड़ता है इसी कारण 4 डिग्री सेंटीग्रेट पर जल का घनत्व अधिकतम होता है. यही कारण है कि शीत प्रदेशों में झील की सतह पर बर्फ जम जाने के बाद भी नीचे जल होता है और जलीय प्राणी इसमें जीवित रहते है.
6- जल के वाष्पीकरण की ऊष्मा अधिक होती है.
7- जल की ऊष्मा धारिता अधिक तथा ऊष्मा चालकता कम होती है
8- सभी जीवों के लिए पानी एक आवश्यक घटक है. सभी जीवों के शरीर तथा पादपों में भरी मात्रा में पानी पाया जाता है.
महत्वपूर्ण तथ्य:-
1- मनुष्य के शरीर में लगभग 70 प्रतिशत पानी रहता है. कुछ फलों और सब्जियों में पानी की मात्रा 90 से 95 प्रतिशत हूति है.
2- सभी पशुओं और पौधों को पानी की आवश्यकता होती है. मनुष्य भी पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता है.
3- मनुष्य औसतन 2 लीटर पानी प्रतिदिन पीता है. यह पानी मनुष्य के ताप को बनाये रखने में सहायक होता है.
4-मनुष्य के शरीर में होने वाली अनेक अभिक्रियाओं के लिए पानी आवश्यक है.
5-पशु तालाब झरनों तथा नदियों का पानी पीतें हैं. पौधे अपने मूलों या जड़ों द्वारा मिटटी से पानी लेते हैं, जड़ों से पौधों के विभिन्न अंगों में पानी जाता है.
6- पौधे अपनी जीवन प्रक्रिया के लिए इस पानी का प्रयोग करते हैं. पौधों और जीवों की अधिकांश जीवन प्रक्रियाएं पानी के माध्यम से होती है.
7- इसके अलावा, मनुष्य को अपने अनेक कार्यों में पानी की आवश्यकता होती है. पौधों को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है.
8- खेतों की सिंचाई के लिए, पानी की जरुरत होती है. खेती में पानी का उपयोग सबसे अधिक होता है.
कठोर जल और मृदु जल:-
जल में अनेक पदार्थ घुल जाते हैं, अर्थात जल एक अच्छा विलायक है ये घुले हुए लवण पानी के कुछ गुणों को बदल सकते हैं.
घुले हुए लवण के कारण जल के स्वाद में परिवर्तन और साबुन का झाग न बनाना जैसे प्रभाव अनुभव होते हैं जिस जल में साबुन का पर्याप्त झाग बनता उसे कठोर जल कहते हैं.
कठोर जल में कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवण की उपस्थिति होती है, जल को कठोर बनाने वाले लवण है: कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम सल्फेट, मैग्नीशियम क्लोराइड, मैग्नीशियम सल्फेट, कैल्शियम कार्बोनेट एवं मैग्नीशियम कार्बोनेट.
कठोर जल पीने के लिए उपयुक्त होता है, परंतु कुछ कार्यों के लिए अनुपयुक्त.
बाइकार्बोनेट यौगिकों से जल में अस्थायी कठोरता और क्लोराइड और सल्फेट के घुलने से स्थाई कठोरता आ जाती है.
पेयजल:-
पेयजल रंगहीन, स्वाधीन, स्वच्छ और पारदर्शक होता है
यह निलंबित अशुद्धियों एवं विभिन्न जीवाणुओं से मुक्त होता है
कुछ घुले हुए खनिज लवण हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते है तथा जल को स्वादिष्ट बनाते हैं
सामान्यतः कुँए एवं नलकूप का जल पीने योग्य होता है
दूषित जल के प्रयोग से टाईफायड, कालेरा, पेचिश आदि भयानक बीमारियाँ फैलती है.
दूषित जल को उबलने से अथवा ब्लीचिंग पाउडर अथवा पोटासियम परमैगनेट मिलाने जल में उपस्थित रोग के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं.
जल प्रदुषण एवं जल संरक्षण:-
घर में, कृषि कार्य में या उद्योगों में उपयोग करने के बाद जा संदूषित हो जाता है, प्रयुक्त जल में कई प्रकार के अवशेष तथा नुकसानदेह पदार्थ मिल जाते हैं जिनको प्रदूषक कहा जाता है. मल-जल और कूड़ा-कचरा भी जल को प्रदूषित करते हैं. जल परदुषण के निम्नलिखित कारण हैं.
मल
मानव
पशु
उद्योगिक कचरे का स्राव
वृक्ष एवं वनस्पतियों के सड़न
मृतक पशु आदि
प्रदूषित जल के सेवन से रोग उत्पन्न होते हैं, हमारे देश में अधिकांश नदियाँ और झीले प्रदूषित हो गई हैं. अतः इनके प्रदुषण को नियंत्रित करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है.
जल संरक्षण:-
जल प्रदुषण का कुछ हद तक कई विधियों से संरक्षण किया जा सकता है, जैसे:
नदियों और झीलों जैसे पानी के स्रोतों में घरेलू, औधोगिक और अन्य अवशेषों को सीधे गिरने से रोककर जल प्रदुषण को कम किया जा सकता है
नदियों के जल प्रदुषण को रोकने ले लिए नदियों के किनारे अवस्थित संयत्रों पर सख्ती बरतने की आवश्यकता है इन उद्योगों के अवशिष्टों को नदियों में बहाने से रोकना होगा.
शहरों की नाले के गंदे जल को भी प्रायः नदियों में बहाया जाता है इस गंदे जल को नदियों में जाने से पहले इनका उपचार करना चाहिए
उद्योगों के अवशिष्ट जल के उपचार का भी प्रबंध करना चाहिए.
पानी के स्रोतों के पास कपड़े धोना और वर्तन साफ नहीं करना चाहिए इनसे उन्हें स्वच्छ रखने में सहायता मिलेगी.
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