किशोर अधिगमकर्ता में शारीरिक विकास
किशोरावस्था (12-18 वर्ष)- इस अवस्था में में व्यक्ति की प्रजनन क्षमता का विकास होता है| reet किशोरावस्था में बालक – बालिकाओं में विकास अत्यंत तीव्र गति से और बहुआयामी होता है|लम्बाई- बालक 18 वर्ष तक बालिकाए 16 वर्ष तक बढती हैं| किशोरावस्था में बालकों की लम्बाई बालिकाओं से अधिक होती है| लगभग 10 सेमी का अंतर होता है| बालकों की औसत लम्बाई (18 वर्ष) 161.8 सेमी और बालिकाओं की औसत लम्बाई 151.6 सेमी होती है|भार- इस अवस्था में बालकों का औसत भर बालिकाओं से लगभग 4-5 किग्रा. अधिक होता है| 12 वर्ष—बालक -28.5 तथा बालिका-29.8 kg ,18वर्ष—बालक 47.3 और बालिका-43.1 kg,reet2017दन्त-किशोरावस्था से पूर्व 27-28 दांत हिते है| प्रज्ञादंत(4) किशोरावस्था क अंत में या प्रोढ़ावस्था के प्रारंभ में आते है| सिर तथा मस्तिष्क- विकास की गति मंद हिती है| 16 वर्ष में पूर्ण विकास हो जाता है और मस्तिष्क का भार 1.2 kg-1.4 kg
हड्डियाँ- अस्थिकरण की प्रक्रिया पूर्ण,लचीलापन समाप्त,दृढ़ताआ जाती है | ज्यादातर हड्डियाँ आपस में जुड़कर एक हो जाती है| प्रोढ़ावस्था में 206 हड्डियाँ
माँसपेशियाँ- मांसपेशियों का विकास बहुत ही तीव्र गति से होता है | 18 वर्ष में शारीर के कुल भार का लगभग 45% हो जाता है और मांसपेशियों में दृढ़ता आ जाती है|
अन्य अंग- समस्त ज्ञानेन्द्रिया (नाक,कान,जीभ,त्वचा,आँख) और कर्मेन्द्रिया(हाथ ,पैर,मुख )का पूर्ण विकास,शरीर सुडोल,बलिओं की त्वचा कोमल,गुप्तांगो का पूर्ण विकास,किशोरियों में कुल्हो,तथा वक्षस्थल का विकास,किशोरों के कंधे चौड़े,मुख पर दाढ़ी तथा मूंछ आने लगते है|,गुप्तांगो और काखो में बालों का उगाना,14-15 वर्ष की अवस्था में किशोरियों में मासिक धर्म का प्रारंभ,थायराइड ग्रंथि के सक्रीय होने से बालकों की आवाज में भारीपन एवम् बालिकाओं की आवाज कोमल,धड़कन की गति में कमी प्रोढ़ावस्था में लगभग 72/min|
संवेगात्मक विकास
संवेग का शाब्दिक अर्थ- उत्तेजित करना,अंग्रेजी- Emotion,लैटिन-Emovereसंवेग व्यक्ति की वह दशा है जिसमे उसकी शारीरिक स्तिथि परिवर्तित होती है तथा वह उत्तेजना महसूस करता है |
“संवेग चेतना की वह अवस्था है जिसमें रागात्मक तत्व की प्रधानता होती |” —-रॉस
“संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है “—वुडवर्थ
गेट्स में 5 संवेग बताये है – भय,क्रोध, प्रेम, दया,कामशक्ति
संवेगों को 2 भागों में बाटा जा सकता है–(1) प्राथमिक संवेग (2) सेल्फ कॉन्शियस संवेग
प्राथमिक संवेग--ये संवेग मानव व पशुओं में पाए जाते है | इनमे भय,दुःख,ख़ुशी,गुस्सा आते है|ये सभी संवेग मानव के जन्म के प्रथम 6 महीनों में उपस्थित हो जाते है|
सेल्फ कॉन्शियस संवेग--संवेगों में कॉन्शियस की आवश्यकता होती है|इनमे शर्मिंदगी,ईष्या,सहानुभूति, आदि संवेग आते है जो कि 1.5-2 वर्ष के बाद शिशु में दिखने लग जाते है|इनके विकसित होने पर बालक सामाजिक मानदंडों और नियमों को ग्रहण करते है | शिशु का सबसे पहला संवेग रोना है उसके बाद हंसना|
संवेगों की विशेषताए
संवेगों की व्यापकता– संवेग सभी ;प्राणियों में पाए जाते है| शारीरिक परिवर्तन– संवेगों के उदय होने पर अस्थायी शारीरिक परिवर्तन होते है| ये शारीरिक परिवर्तन 2 प्रकार के होते है|
1-आतंरिक शारीरिक परिवर्तन –जल्दी जल्दी श्वासलेना,ह्रदय की धड़कन बढ़ जाना
2-बाह्य शारीरिक परिवर्तन-आवाज में परिवर्तन,मुख मंडल का रंग बदलना,अंग सञ्चालन की गति में परिवर्तन
विचार प्रक्रिया का लोप –संवेगों के समय विचार करने की योग्यता कम हो जाती है या लुप्त हो जाती है व्यक्ति चिंतन,तर्क नहीं कर सकता |
व्यक्तिगतता-–एक ही स्तिथि में भिन्न -भिन्न व्यक्तियों में संवेगों की मात्र भिन्न -भिन्न होती है |
संवेगों की अस्तिरता–संवेगों की प्रकृति अस्थायी होती है ये कुछ समय बाद स्वतः ही शांत हो जाते है| संवेगों का स्थानांतरण–संवेग कभी कभी अन्य परिस्तिथियों में स्तानान्तरित हो जाते है|
मूल परवर्तियों से सम्बन्ध–संवेगों की उत्पति मूल संवेगों से होती है मेक्डूगल ने 14 संवेग और 14 मूल प्रवृतिया बताई है |
संवेगों की क्रियात्मक प्रवृति–संवेग से व्यक्ति में कोई न कोई क्रिया अवश्य होती है आमोद में व्यक्ति हँसता है,क्रोध में भोंहै तन जाती है|
संवेग में सुख- दुःख का भाव निहित होता है| प्रेम वात्सल्य आदि सुखद संवेग-क्रोध भय घृणा आदि दुखद संवेग|
मूल प्रवृति | संवेग |
संतान कामना | वात्सल्य |
पलायन | भय |
शरणागति | करुणा |
काम प्रवृति | कामुकता |
जिज्ञासा | आश्चर्य |
आत्मगौरव | आत्म-अभिमान |
सामूहिकता | एकाकीपन |
भोजन तलाश | भूख |
संग्रहण | अधिकार |
रचनाधर्मिता | कृतिभाव |
हास | आमोद |
युयुत्सा | क्रोध |
निवृति | घृणा |
दैन्य | आत्महीनता |
1 राग 2 द्वेष
1 रागात्मक संवेग—- अपने से बड़ो के प्रति — सम्मान,भक्ति,श्रद्धा
अपने बराबर वालों के प्रति- – मित्रता,प्रेम,आसक्ति
2 द्वेषात्मक संवेग —–अपने से बड़ो के प्रति –भय,कायरता,घृणा
अपने बराबर वालों के प्रति– क्रोध,ईष्या,जलन
अपने से छोटों के प्रति—— गर्व,अभिमान,अधिकार
शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास-
संवेग (सभी) जन्मजात नहीं होते है ये धीरे धीरे विकास की और अग्रसर होते है|प्रारंभ में शिशु का संवेग सामान्य उतेजना मात्र है
शिशु का संवेगात्मक व्यवहार अत्यधिक अस्थिर होता है|
आयु बढ़ने के साथ साथ ऋणात्मक संवेगों में कम आती है एवम् धनात्मक संवेगों में बढ़ोतरी होती है| प्रारंभ में शिशु में संवेग अस्पष्ट होते है| लगभग 2 वर्ष की आयु तक शिशु में सभी संवेगों का विकास हो जाता है| फ्रायड के अनुसार शिशु में आत्मप्रेम(नीर्सीसिज्म) की भावना होती है| 4-5 वर्ष बाद बालक में मातृप्रेम या पितृविरोधी(oedipus complex) भावना ग्रंथि का विकास होता है|बालिकाओं में पितृप्रेम या मातृविरोधी(Electra complex) भावना ग्रंथि का विकास होता है|
बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास
संवेग की उग्रता में कमी आ जाती है| ईष्या व द्वेष की भावना का विकास हो
जाता है| भय का संवेग मुख्य रूप से उपस्थित्त रहता है| निराशा की भावना से
पीड़ित रहता है| परिवार समाज विद्यालय द्वारा बांये गए नियमों से बालक स्वयं को बंधक मानता है| जिज्ञासा प्रवृति बहुत ज्यादा होती है| क्रोध का सवेग भी प्रबल हो जाता है|मुख्य संवेग जो बाल्यावस्था में स्पष्ट रूप से दिखाई दते है– भय निराशा चिंता व्यग्रता कुंठा स्नेह हर्ष प्रफुल्लता
किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास
किशोरावस्था का आगमन संवेगात्मक व्यवहार में आये तीव्र परिवर्तनों से ही परिलक्षित होता है|भाव प्रधान जीवन– दया प्रेम क्रोध सहानुभूति सहयोग की प्रवृति|
संवेगों में विभिन्नताए- कभी हतोत्साहित तो कभी पूर्ण उत्साहित, कभी अत्यधिक प्रसन्न कभी अत्यधिक खिन्न, कभी अत्यंत दयालू कभी निर्दयी|
काम भावना- किशोरावस्था में काम भावना व्यव्हार के केन्द्रीय रूप में कार्य करती है |
स्व प्रेम
1 समलिंगी प्रेम , 2 विषम लिंगी प्रेमवीर पूजा- कहानियो उपन्यासों चल-चित्रों आदि को देखकर उनके नायको को आदर्श रूप में प्रस्तुत कर स्वयं को उनके जैसा बनाने की कौशिश करते है|
स्वभिमान की भावना – आत्म गौरव, आत्मसम्मान,स्वाभिमान पर आघात सहन नहीं करते है|
अपराध प्रवृति- संवेगात्मक व्यवहार में समायोजित नहीं होने की वजह से उन्हें कठिनाई का सामना करना पडता है, प्रेम में असफल होने पर या इच्छापूर्ति में बाधा उत्पन्न होने पर किशोर कोई न कोई अपराध कर बैठाता है|
चिंतायुक्त व्यव्हार – किशोर – किशोरियां अनेक बातों पर चिंतित रहते है जैसे – रंग-रूप,स्वास्थ्य,मान -सम्मान,आर्थिक स्तिथि, सामाजिक स्वीकृति,शैक्षिक प्रवृति, भावी व्यवसाय|
स्वतंत्रता की भावना- सामाजिक रीती रिवाजों और संस्कृति के प्रति तर्क करते है और वो उनके बंधन में बंधना नहीं चाहते है अपने आप को सवतंत्र रखना चाहते है|
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